अभी और कितना पतन शेष है भारतीय राजनीति का ?
छात्रों को मोहरा बना कर अपनी राजनीतिक चालें चलने वाले और अपशब्दों की सीमाओं पर सीमाएं लांघते कथित राजनीतिज्ञों ने भारतीय राजनीति के चेहरे को इस कदर बिगाड़ रखा है कि धीरे-धीरे इसे पहचानना भी मुश्क़िल हो चला है। सविनय अवज्ञा और अहिंसा के बल पर स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला देश आज बात-बात पर हिंसा की चपेट में आ रहा है। यह माहौल शांति के पुजारी देश भारत का तो नहीं लगता। किन्तु दुर्भाग्य से यही माहौल है आज देश में। हठधर्मिता और अपशब्द लोकतंत्र के सम्मान को निरंतर ठेस पहुंचा रहे हैं। आखिर यह कौन-सा चेहरा है राजनीति का? इस प्रश्न के उत्तर में ही मौजूद है यह प्रश्न भी कि भारतीय राजनीति का अभी और कितना पतन शेष है?
हिंसा की लपटों में सेकतें राजनीतिक रोटियां
किसी भी विचार के विरोध का तरीका यदि हिंसा और मार-पीट का हो तो उसे भारतीय लोकतंत्र के अनुरुप नहीं माना जा सकता है। इन तरीकों के अपनाए जाने में अनेक निर्दोष भी हिंसा के शिकार हो जाते हैं। यूं भी हिंसा किसी समस्या का समाधान कभी हो ही नहीं सकती है। वैचारिक विरोध करने का अधिकार सभी को है किन्तु हिंसा का अधिकार किसी को नहीं होता है। इससे भी बड़े दोषी वे लोग हैं जो हिंसा की लपटों में अपनी-अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में व्यस्त हैं। 05 जनवरी की शाम को जेएनयू में नकाबपोश हथियारबंद लोगों ने छात्रों और शिक्षकों पर लाठी-डंडे और हथियारों से हमला किया, जिसमें करीब 34 छात्र और अध्यापक घायल हो गए। देश भर के छात्र इस घटना से सकते में आ गए और जेएनयू के घायल छात्रों के समर्थन में अपने-अपने घरों से निकल पड़े। जेएनयू में हिंसा के बाद देशभर में प्रदर्शन होने लगे। 06 जनवरी की शाम को यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने इंडिया गेट पर मशाल रैली निकाली। वहीं, मुंबई स्थित गेटवे ऑफ इंडिया पर छात्रों ने प्रदर्शन किया। तमिलनाडु में छात्रों ने कैंडल मार्च निकाला। इससे पहले दिल्ली पुलिस ने स्वतः संज्ञान लेते हुए अज्ञात आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की। सुरक्षा के मद्देनजर जेएनयू में 700 पुलिसकर्मी तैनात किए गए क्योंकि उत्तरी गेट पर छात्र एकत्रित होकर विरोध जता रहे थे। वहीं, कोलकाता में लेफ्ट और भाजपा समर्थक इसी मामले पर आमने-सामने हुए।
व्यक्तित्व भी उतर आए मैदान में
दरअसल, जेएनयू में फीस बढ़ोतरी के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान रविवार रात हिंसा हुई थी। नकाबपोशों ने छात्र-शिक्षकों को डंडे और लोहे की रॉड से बुरी तरह पीटा। वे ढाई घंटे तक कैंपस में कोहराम मचाते रहे। हमले में छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष समेत कई घायल हो गए। आइशी ने एबीवीपी पर हमले का आरोप लगाया और कहा कि नकाबपोश गुंडों ने मुझे बुरी तरह पीटा। करीब 35 लोग जख्मी हो गए। जिनमें से 23 घायलों को इलाज के बाद एम्स से छुट्टी दे दी गई। इसके पूर्व 15 दिसंबर को जामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन का आयोजन किया था। प्रदर्शकारियों की रैली जब न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी पहुंची तो पुलिस ने उन्हें आगे बढ़ने से रोकने की कोशिश की। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने उग्र रूप धारण कर लिया. पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए लाठी चार्ज किया और आंसू गैस के गोले दागे। प्रदर्शनकारी उस वक्त वहां से हट गए और वापस लौट गए। इसके बाद पुलिस ने कथित रूप से लायब्रेरी में घुस कर छात्र-छात्राओं को डंडों से पीटा था। जिसके विरोध में देश भर कर के छात्रों ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। देश के अनेक बुद्धिजीवी और कलाजगत के नामचीन व्यक्तित्व भी मैदान में उतर आए थे।
आरोप-प्रत्यारोप का स्तरहीन दौर
अभी जामिया यूनिवर्सिटी के जख़्म भरे भी नहीं थे कि जेएनयू में जिस तरह से मार-पीट हुई, उसने छात्रों की सुरक्षा व्यवस्था की धज्जियां उड़ा दीं। घटना को ले कर आरोप-प्रत्यारोप का स्तरहीन दौर चल ही रहा था कि एक चैंकानेवाले बयान ने एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया कि कहीं छात्र राजनीतिज्ञों की लालसा के शिकार तो नहीं बनाए जा रहे हैं? 06 जनवरी को देर रात हिंदू रक्षा दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष भूपेंद्र तोमर उर्फ पिंकी चैधरी ने सोमवार देर रात वीडियो वायरल कर जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू), दिल्ली में हुए विद्यार्थियों व शिक्षकों पर हमले की जिम्मेदारी ले ली। एक मिनट 58 सेकंड के इस वीडियो में वह कहते नजर आए कि देश विरोधी गतिविधियां हिंदू रक्षा दल बर्दाश्त नहीं करेगा। देश विरोधी गतिविधियां करने वालों को ऐसा ही जवाब दिया जाएगा, जैसे रविवार शाम को दिया है। जेएनयू में छात्रों व शिक्षकों की पिटाई करने वाले उनके कार्यकर्ता थे। धर्म के खिलाफ जो भी बोलेगा, हम उसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने जेएनयू को कम्यूनिस्टों का अड्डा बताते हुए कहा कि यहां देश विरोधी गतिविधियां हो रही हैं। हम ऐसे अड्डे बर्दाश्त नहीं करेंगे। पहले से ही हम लोग अपने धर्म के लिए प्राणों को न्योछावर करने लिए तैयार रहते हैं। अगर आगे भी किसी ने ऐसी देश विरोधी गतिविधियां करने की कोशिश की, तो इसी तरह से जवाब देंगे। बता दें कि पिंकी चैधरी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कार्यालय पर हमले के आरोप व अन्य मामलों में जेल जा चुके हैं। वीडियो जारी करने के अलावा उन्होंने पत्रकारों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर भी हमले की जिम्मेदारी ली।
अब नौबत यहां तक आ पहुंची राजनीति के गिरते स्तर
रहा सवाल राजनीति के गिरते स्तर का तो अब नौबत यहां तक आ पहुंची है कि कथित राजनीतिज्ञ परस्पर एक-दूसरे पर नपुंसक, समलैंगिक जैसे ओछे आरोप लगाने में भी नहीं हिचक रहे हैं। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने मीडिया से चर्चा करते हुए प्रशासन की कार्रवाई पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा थाकि, ‘‘प्रशासनिक कार्रवाई को यदि राजनीतिक रूप दिया गया तो भाजपा सड़क पर उतरकर आंदोलन करेगी। कई कार्रवाई में भाजपा के पदाधिकारी एवं कार्यकर्ताओं को टारगेट किया जा रहा है। इसकी शुुरुआत हनीट्रैप से हुई है। विजयवर्गीय ने कहा कि, मैंने कभी कमर के नीचे की राजनीति नहीं की। ना कभी भविष्य में करने की सोचता हूं। यदि मजबूरी में करना पड़ी तो वह भी करके बताऊंगा। इसलिए अधिकारी किसी भ्रम में ना रहें। हमने भी सरकार चलाई है। केंद्र में चला रहे हैं। मैं कमर के नीचे वार नहीं करता। मैंने संकल्प ले रखा है कि कमर के नीचे की राजनीति नहीं करता। वह संकल्प कभी टूट भी सकता है।’’
जिस राजनीति में ‘‘कमर से नीचे की राजनीति’’ के जुमले भी सुर्खियां बनने लगे हैं, क्या उसे सभ्य समाज की सभ्य राजनीति कहा जा सकता है? इसी दौरान एक और अभद्र नमूना सामने आया। पहले कांग्रेस सेवादल की किताब में नाथूराम गोडसे और सावरकर के बीच समलैंगिक संबंध का दावा किया गया जिसके प्रतिरोध में अखिल भारतीय हिंदू महासभा के अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बारे में विवादित टिप्पणी की है कि सुना है वे समलैंगिक हैं। समलैंगिकता अपराध नहीं है किन्तु उसे जिस प्रकार राजनीति में घसीटा गया उससे राजनीति के स्तर को गहरी चोट पहुंची। बहरहाल, हिंसा और अपशब्दों का यह दौर अब थमना चाहिए वरना कहीं ऐसा न हो कि भारतीय राजनीति का चेहरा पूरी तरह विकृत हो जाए।
✍ डाॅ. शरद सिंह
🔳 लेखक साहित्यकार है