रतलाम के समृद्ध अतीत का वजूद मिटते-मिटते आ पहुंचा आखरी निशान तक

मगर यह हो न सका

हरमुद्दा

रतलाम, 29 जनवरी। रतलाम स्थापना महोत्सव समिति का अनेक कारणों से आयोजन में व्यापक धन राशि खर्च करने के टकराव के कारण हाथ खींच लिए गए। रतलाम स्थापना महोत्सव का उद्देश्य रतलाम की रियासत काल की स्मृतियों को सजीव बनाए रखने और विकास के लिए रत्नपुरी से रतलाम बनने-बनते होने वाले परिवर्तनों की एक झांकी पेश करना थी।

1580288869999

इतिहास के पन्नों पर रत्नपुरी रियासत का कोई खास उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन जून 1948 में रतलाम जिला बनने और 1949 में पुनर्गठित होते-होते रत्नपुरी रतलाम जोरा सैलाना रियासत को जोड़कर बड़ा परकोटा बन गई। महाराजा रतन सिंह और पुत्र राम सिंह के नामों को जोड़कर शहर का नाम रतनराम और फिर रत्नललाम हुआ।

इतिहास के संदर्भ में रतलाम

इतिहास के संदर्भ में मुगल बादशाह शाहजहां ने हाथियों पर बैठकर खेले जाने वाला खेल में बहादुरी पूर्ण करतब दिखाए जाने पर रतलाम की जागीर ठाकुर रतन सिंह को दी थी। जागीर बनते ही बादशाह और सुजा में सत्ता को लेकर जंग शुरू हुई। राजा रतन सिंह ने शाहजहां का साथ दिया। औरंगजेब ने सत्ता को हथियाने के बाद सबसे पहले अपने विरोधियों को जागीरो से बेदखल किया। राजा रतन सिंह को भी फरमान जारी कर सत्ता से बेदखल कर दिया गया।

मिलते हैं प्रसंग

इतिहास में रतलाम रियासत से संबंधित प्रसंग मिलते हैं। देखकर पता चलता है कि राजा को अंतिम समय सीतामऊ मैं बिताना पड़ा और यही मृत्यु हुई। आज भी सीतामऊ में रतन सिंह जी की समाधि और छतरी बनी हुई है। औरंगजेब ने सरवनी जागीर एक सैयद काजी द्वारा मध्यस्थता करने पर रतन सिंह के बेटे को फिर से जागीर लौटा दी।

शिव मंदिर और वास्तुकला

रतलाम में रियासती स्मारकों की दुर्दशा देखकर जनप्रतिनिधियों से लेकर महलों की ठकुराई हाँकने वाले ठाकुरों की अपने अतीत की यादों को बरकरार रखने के लिए की गई कोशिशों और इच्छाशक्ति की साफ तस्वीर देखी जा सकती है। रतलाम रियासत के शिव मंदिर रतलाम सहित इंदौर और अलवर तक मैं अपनी खास वास्तुकला के कारण जाने जाते हैं। आज उनको जानने पहचानने वाला कोई नहीं है। रतलाम पैलेस के जिस राज महल में राज दरबार लगा करते थे, वहां गहरा सन्नाटा पसरा है और महल की दीवारें दरक रही है। रियासत के अस्तित्व को नित्य ही काल के गाल में भेज रही है।

IMG_20200129_124359

आंदोलन और अनदेखी

कई आंदोलन राज्य संपत्ति के रख-रखाव और राज्य स्मारकों के जीर्णोद्धार के लिए किए जाते रहे, लेकिन रतलाम में अब तक के जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के कारण रतलाम के समृद्ध अतीत का वजूद मिटते मिटते आखरी निशान तक आ पहुंचा है।

औपचारिकता बनकर रह गया स्थापना उत्सव

रतलाम की स्थापना को जनमानस के बीच में जीवित रखने के लिए वसंत पंचमी पर प्रतिवर्ष रतलाम स्थापना समिति द्वारा आरंभ में तो दो-तीन दिन के लिए बड़े आयोजन किए गए लेकिन आपसी विवाद और धन की कमी के कारण रतलाम की स्थापना उत्सव एक औपचारिकता बनकर रह गया है, जबकि प्रतिवर्ष रतलाम संस्थापना उत्सव विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक, सामाजिक और साहित्यिक आयोजनों से सज्जित होते हुए स्थापना दिवस वसंत पंचमी पर गरिमा पूर्ण उद्बोधन और आगामी एक वर्ष के लिए संकल्प में ली जाने वाली कार्य योजनाओं से समापन होना था, मगर यह नहीं हो सका।

किसकी जिम्मेदारी ?

रतलाम के जनमानस की एक राय है कि रतलाम स्थापना महोत्सव नगर विधायक द्वारा आयोजित किया जाना चाहिए। रियासत कालीन समस्त स्मारकों को जीर्णोद्धार, रंगाई पुताई और उचित रख-रखाव के प्रबंध किए जाने चाहिए। मगर यह नहीं हो सका।

वार्षिक विकास का प्रतिवेदन

रतलाम स्थापना दिवस पर विधायक को वार्षिक विकास प्रतिवेदन का वाचन भी करना चाहिए ताकि जनप्रतिनिधि की तत्परता के संबंध में समूचे प्रदेश को दिशा दिखाती। एक अच्छी पहल की शुरुआत सांस्कृतिक वैभव के पुरोधा और शब-ए-मालवा के गुलजार शहर रतलाम से हो। यही नहीं बल्कि शहर के चौराहे और बगीचों का सौंदर्यीकरण हो। जो रियासत की आभा को जगजाहिर करने वाला एक बड़ा कदम हो सकता है। मगर यह नहीं हो सका।

रतलाम के वास्तु का सच

रतलाम की वस्तु स्थिति के संबंध में विशेषज्ञ वास्तुकारों का मत है कि जैसे कर्ण को अभिशाप था कि वह ठीक वक्त पर अपना बल उपयोग नहीं कर सकेंगे, ठीक उसी प्रकार बड़े-बड़े शक्ति संपन्न जनप्रतिनिधि भी विकास के सामने पढ़ते ही अपनी क्षमता खो बैठते हैं। इसीलिए रतलाम विकास के दृष्टिकोण से लगभग उपेक्षित और अविकसित ही पड़ा है। टिप्पणीकारों का कहना है कि जय रतलाम गाने से कुछ नहीं होगा रतलाम को विकास की गति देने के लिए रतलाम की जनता को आगे आना होगा। प्रशासनिक इच्छाशक्ति को मजबूत करना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *