वो कब कैसे बनी अभागिनी ?

त्रिभुवनेश भारद्वाज

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अरण्य रुदन
अग्नि में सुकांति सुमन
नित्य निरंतर
सिसकी सुबकी
पलक झरे अनिमेष अंसुअन
शिवा की प्रणयिनी
उपासना कमलकांत की
प्रार्थना जग रचयिता की
संबोधना करुणा ,प्रेम ,वात्सल्य की
अनुमोदन धरा पर प्रगट ईश्वर की
वैदेही की देह परीक्षा
धैर्या को धीरज की शिक्षा
सर्वस्व शुभा को शुभ की दीक्षा
कृपानिधि क्यों मांगे भिक्षा
दासी बनी वसुधा वैभवी
अनुगामिनी क्यों बनी पथ प्रदर्शनी
जिसे भाग बना भेजा धरती पर
वो कब कैसे बनी अभागिनी
एक दिवस क्या एक निमिष ही
सोचो बैठ किसने क्या खोया
समस्त चेतना की अधिष्ठात्री को
अन्धकार में देख जग पिता रोया
क्या प्रायश्चित्त और कैसा पछतावा
नारी आदर आदर्श न बना
नार्यस्तु पूज्यन्ते रम्यते तत्र देवता झूठा हुआ
ठोकरों में बिछी अस्मिता
बिलख बिलख कर रोए शुचिता
जिस गुण ने वामा को विशेष बनाया
उसी विशेष ने पग पग प्रश्न बनाया
चन्द्रमा लांछित क्यों हैं कहानी पता हैं न
अहिल्या पाहन क्यों थी पता हैं
हर शबरी का उद्धारक राम
हर द्रोपदी का सहायक श्याम
मैं चेतन्य होकर भी पराश्रित सत्ता हूँ
मैं संजीवनी होकर भी मृत प्रणिता हूँ
मैं केशव की मुस्कान राधा
मैं राम का अनुप्राण सीता
मैं शिव की त्राटिका शक्ति
मैं अभिशापित युगों युगों से
यो तो दास हैं जगपति मेरे
पर मैं दासानुदासी युगों युगों से
मैं वेदों की गूंज ऋचा
मैं संतापित युगों युगों से
अभी कुछ और पहरे हैं
अभी कुछ और हैं निर्वासन
अभी कुछ और हैं रुदन
अभी कुछ और हैं लांछन
जब होगी अभिशाप से मुक्ति
तब होगा मेरा युग आरम्भ

आज विश्व महिला दिवस 8 मार्च 2019 को रचित रचना
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