“बुद्धिमत्ता को निगल जाती प्रसिद्धि और सम्मान की भूख”

राजेश घोटीकर

प्रसिद्धि और सम्मान की भूख बुद्धिमत्ता को निगल जाती है……………. एक जंगल था। इस जंगल में बड़े सुन्दर पहाड़, नदियाँ, झरने, झील, तालाब थे। फल, फूल, कँद, औषधियाँ और इमारती लकड़ी का बड़ा भण्डार था। छोटे से कीड़े से लगाकर भीमकाय हाथी, अनेक रंग बिरंगी तितलियाँ और परिंदों का आसरा था यह जंगल। जंगल की नदियाँ भी अनेक जलजीवों से भरी थी। शाकाहारी, माँसाहारी और सर्वाहारी जीवों का स्वरूप था यह जंगल।
ऋषि मुनियों की तपोभूमि भी इस जंगल में ही थी। धर्म स्थल भी इस जंगल में ही थे। नदियों का उद्गम भी यहाँ ही थे। भयानक डरावने और जहरीले जन्तुओं को भी अपने में समेटे हुए थी यहाँ की प्रकृति। प्राकृतिक जीवनचर्या अपनी ही गति में थी।

कभी हूक तो कभी कूक

नीरवता में कभी हूक तो कभी कूक, कभी दहाड़ तो कभी चिंघाड़ से वातावरण गूंज उठता। चिडि़यों की चिट-चिट, पेड़ों के पत्तों के खड़खड़ाने की ध्वनि, टहनियों के चरमराने का स्वर, झरने का झरता संगीत, मस्त कर देने वाली खुशबुएँ, आँखों को लुभाने वाली रोशनी क्या कुछ नहीं था यहाँ।
इसी जंगल की बात है चिंटू खरगोश अपने भाई बहन और माता पिता के साथ एक झाड़ी के नीचे बनाए बिल में रहता था। पास ही के बरगद के नीचे सेही ने भी अपनी मांद खोद रखी थी। श्यामू जो काला हिरण था अपने झुण्ड के साथ अक्सर आसपास दिखाई दे जाया करता था। महिष नाम का काला भैंसा अपने झुण्ड का सरदार था उसके झुण्ड में करीब 200 जंगली भैंसे थे। गब्दु नील गाय का झुण्ड आतंक मचाने आता था मगर चिंटू खरगोश के बिल के आसपास घनी झाडि़यों की वजह से कोई तकलीफ नहीं हुई मगर सेही को कई बार काँटे झनझनाने पड़ते थे। शांतू चीतल का झुण्ड जब आता तो ‘‘हूपी’’ की वानर सेना भी वहाँ आ डटती थी या कहें लंगूरों को पीछा चीतल किया करते क्योंकि पेड़ों से फल और पत्ते जो भी नीचे गिरता उसमें चीतलों की मौज थी। जंगली सुअर भी इनके बीच बीच में आते जाते रहते।
बिल्ली, सियार, भेडि़ए, लकड़बघ्घे, लोमडि़याँ, तेंदूए, चीते, बाघ, भालू और बब्बर शेर की दिनचर्या शाम को प्रारंभ होती। जब तक सूरज ढलने की तैयारी करता ये सभी अलसाते उठते। फिर किसी कमजोर प्राणी को शिकार बनाते। शिकारी की गिरफ्त से बचकर भाग निकलने में कई जानवर घायल भी हो जाया करते। भीषण घाव और रक्त के रिसाव और पीड़ा के दुःख भोगते कई प्राणी छोटे शिकारी जानवरों का दर्दनाक ग्रास बनने या कभी गिद्धों का भोजन। उनकी जीवित दशा में भी कई बार उनको नोचा जाता आखिरकार वे दम तोड़ते और भूखे मांसाहारी अपना पेट भरते। इन बातों से जब सारे जानवर जो शाकाहारी थे घबड़ा उठे तो उन्होंने जंगल के राजा शेरूसिंह से इस बारे में चर्चा करने की ठानी। हाथी और भैंसे झुण्ड में ताकतवर रहते हैं सो उनका दल आगे चला। पीछे हिरण और अन्य छोटे जीव थे। शेरूसिंह अपनी मांद में भोजन कर सुस्ता रहा था तभी उसने देखा कि सारे शाकाहारी जानवर उनकी तरफ बढ़े चले आ रहे हैं तो एक बार उसका मन घबरा गया। वह वहाँ से भागने की सोचने लगा। बाहर निकलकर उसने देखा कि वह चारों तरफ से घिर गया है तो उसने भीषण दहाड़ लगाई मगर आज तो सारे शाकाहारी चर्चा का निशच्य करके आए थे और एक संगठित दल के रूप में थे तब भी वे ठिठुक उठे थे हाथी ने शेर से कहा कि आज हम अपनी समस्या पर तुमसे चर्चा करने आए है। आप कृपया नाराज मत होईए। हमारी बात सुनने की कृपा करें।
शेर घबड़ाया हुआ था उसे भी इस बात से तसल्ली हुई कि कोई अनर्थ उसके साथ नहीं होने जा रहा। वह अपने सिंहासन रूपी चट्टान पर जा चढ़ा उसे जंगल का राजा होने का महत्व समझ में आया।
भीड़ में से खरगोश को आगे लाया गया क्योंकि एक वही ठीक प्रकार से बात कर सकता था। ऐसा बाकि जानवर समझते थे। खरगोश ने अभिवादन कर अपनी बात प्रारंभ की। उसने कहा हे महाराज हम सभी शाकाहारी प्राणी रोज के जीवन-मरण के चक्र से व्याकुल हो चुके है इस व्यवस्था में हम आपसे सुधार की अपेक्षा रखते हुए आपके पास आए है।
क्या व्यवस्था चाहते हो? शेर बात पूरी होने के पहले ही दहाड़ा।
खरगोश बोला ‘‘गुस्ताखी माफ हो महाराज मगर आपका शासन दूर देषों तक अपना नाम रोशन करे। आपके देश में अमन चैन कायम हो यही हमारी मंशा है।
तो अभी अमन चैन नहीं है क्या? शेर बोला
जी महाराज ऐसी बात नहीं है मगर व्यवस्था के सुधार दिए जाने से हमारे साथियों में पल रहा भय कम पड़ेगा और घायल हो दम तोड़ते हमारे साथी भी हमारे यहाँ नहीं रहेंगे।
ये क्या बात हुई भला? क्या अभी हमारे देश में घायल प्राणी होते हैं?
जी हुजूर दिन भर की आपाधापी और आपके भय के मारे भागते दौड़ते कईयों के पैर टूट जाते है। कई जगह खरोंच और कांटों से घाव हो जाते है। फिर दर्दनाक मौत का सिलसिला जो देखते भी नहीं बनता।
हमारे शासन में भय क्या बात कह रहे हो …………..
हुजूर गुस्ताखी माफ हो मगर शिकारी जानवरों के घायल किए प्राणी भी इनमें शामिल करें। आप जब देखेंगे तो पता चलेगा कि किस कदर घायल प्राणी इधर उधर मौत की राह तकते पड़े हुए है। कुछ व्यवस्था बनाएँ हुजूर वरना भय का वातावरण हमें यह जगह छोड़ देने को मजबूर कर देगा।
अच्छा तो तुम क्या चाहते हों, बताओ? कुछ तो सोचा होगा?
आप जैसे सहृदय प्राणियों के राजा से हमें यही उम्मीद है कि व्यवस्था सुधारने में आप रूचि दिखाएंगे। हम आपकी इस भावना के प्रति आभारी है। हम चाहते है कि हमारा राज्य भय मुक्त रहे इसलिए आपको भी कड़े परिश्रम की जरूरत न रहे। हममें से कोई एक, रोजाना आपके पास आकर आपकी आहार पूर्ति कर देगा बस आप भी किसी की स्वच्छंदता को न छेड़े यही अपेक्षा है।
ठीक है ऐसा ही सही। मगर यदि तुममें से किसी ने सेवा में गलती कर दी तब?
ऐसा होगा तो नहीं, मगर फिर आपके गुस्से का हमें डर भी तो है। जो चाहिए सजा दे दिजिएगा।
बस यही से व्यवस्था बदल गई प्रतिदिन कोई न कोई प्राणी अपनी बारी आने पर शेर का आहार बनने चला जाता। वो जंगल के घायलों का डर जानता था इसलिए अपनी बारी आने पर उदास मन से प्रस्तुत हो जाता।
शेर के दिन मजे से कट रहे थे और उसके आश्रित भी झूठन से संतुष्ट थे।
एक दिन टॉस किया गया तो खरगोश का नंबर आ गया। छोटी सी जान उदास मन से शेर की ओर चल पड़ी। रास्ते में उसे एक कुआँ नजर आया उसने झाँककर देखा तो उसे वहाँ दूसरा खरगोश झाँकता दिखा। उसके मुँह से ‘वाह क्या बात है’ निकल पड़ा तो आवाज कुएँ से लोट कर आई उसके दिमाग में युक्ति आई और वह खुश हो गया। यह कहानी आपने शायद पढ़ी होगी। खरगोश शेर के पास जब देरी से पहुंचा तो शेर बड़ा क्रोधित हुआ। उसने कहा एक तो छोटी सी जान फिर इतना विलम्ब कर दिया आने में कि मैं मारे भूख के तिलमिला उठा हूँ।
खरगोश अपनी रणनीति के तहत तेजी से दौड़कर पहुँचा था। सो हाँफते हुए पहुंचा था। उसने उखड़ी साँस से कहा महाराजा मुझे क्षमा करें। क्या करूं बड़ी मुष्किल से यहाँ पहुँच पाया हूँ?
क्यो ऐसा क्या हुआ? – शेर ने पूछा।
हुजूर रास्ते में कोई दूसरा शेर मिल गया कह रहा था कि वही यहाँ का राजा है। कह रहा था तुम्हे अब शेरूसिंह के पास जाने की जरूरत नहीं है। बड़ी मुश्किल से जान बचाकर भागा हूँ साहब। गनीमत है कि आप तक आ पहुँचा हूँ, वरना आपका क्रोध भी तो खराब ही है।
बताओं वो अब कहाँ होगा?
चलिए आपको रास्ता बताता हूँ जहाँ वो दिखा था। शायद आपके डर से यहाँ आने में घबरा गया होगा।
एक तो भूख की तिलमिलाहट फिर खरगोश जैसा आहार उपर से प्रतिद्वंदी की मौजूदगी और शासन पर कब्जे की बात शेरूसिंह का क्रोध सातवें आसमान को छू गया था। खरगोश के पीछे आव देखा न ताव चल पड़ा। खरगोश भी कभी इधर तो कभी उधर ताकता चल पड़ता। वो यकीन दिलाता जाता कि उसकी बात में सच्चाई है। आखिर उस कुएँ के पास ले जाकर उसने भीतर झाँका और बोला हुजूर ये देखो आपके डर के मारे यहाँ भीतर छुपा बैठा है।
शेर ने तुरंत दहाड़ते हुए भीतर झाँका तो भीतर से गुंजकर आई प्रतिध्वनि की दहाड़ और अपनी परछाई दिखी वो कसमसा गया और शेर जो असल में उसी की परछाई थी पर लपक पड़ा और कुएँ में जा गिरा।
क्हते है सूझबूझ से काम लेने पर बड़ी से बड़ी आफत को भी टाला जा सकता है। खरगोश और सिंह की यह कहानी बचपन में पढ़ाई जाती रही थी, थोड़ा सा परिवर्तन कर इसी कहानी को लंबा दिया है। कैसी लगी यह कहानी आपको? पर यह अभी खतम नहीं हुई है।
कुएँ में गिरते ही शेर मरा नहीं था और खरगोश भी सबकी जान बचाकर आम प्राणी की तरह नहीं रहा।
शेर डूबने लगा था। बड़ी मुश्किल से वह वहाँ अपने को बचाने की कोशिश कर रहा था। वहाँ से बड़ी करूण दहाड़ में उसने बचाने की आवाजे की। उसकी आवाज सुनकर उसकी जूठन पर पलने वाले प्राणी दौड़े आए। उन्होंने देखा कि शेर कुएँ में पड़ा है और बचाने के लिए मिमिया रहा है।
शेर ने उन्हें बताया कि खरगोश कैसी चालबाजी में उलझा गया। बचने के सारे जतन समाप्त हो गए और शेर भूख और आधा पानी में लटका कई दिनों पड़ा रहा और फिर वहाँ मर गया।
इधर खरगोश अपनी कामयाबी पर सीना ताने लौटा तो सभी जानवर पहले तो नाराज हो गए कि उसने नई मुसीबत कहाँ पैदा कर डाली सबके लिए। फिर यह जानकर कि मुसीबत से उन्हें सदा के लिए खरगोश की सूझबूझ ने मुक्त करा दिया है तो वे झूम उठे। उनकी सभा में खरगोश का अभिनंदन किया गया। जश्न मना। एक सलाह यह भी आई कि खरगोश से जीवनोपयोगी सबक सीखने की जरूरत है तो उससे शिक्षा लेने का मन बना। गुजारिश की गई फिर खरगोश की क्लास शुरू हो गई।
जानवर नई नई तकनीके सीखने लगे। अपने अनुभवों से सावधानी बरतना आदि उनकी आदतों में शामिल होने लगा। पास के राज्यों तक यह बात फैली तो उनके यहाँ भी डिमाण्ड हुई आखिरकार हर्बिवोरस एंटी पोचिंग एजुकेशनल युनिवर्सिटी कायम हो गई। खरगोश कुलपति बन गया। शाकाहारी सुरक्षा और चकमा देने की विधि सीखने लगे।
दिन ब दिन माँसाहारी प्राणियों का जीना मुहाल होने लगा। उनके हाथों आने वाला शिकार उनको चकमा दे जाया करता। तो सभी ने अपनी समस्या के प्रति उपाय ढूँढने के लिए मिटिंग बुलाई। शेर, चीते, गुलदार, लकड़बघ्घे, सियार, लोमडि़याँ इकट्ठे होने लगे गिद्द, कौवे भी डालों पर आ बैठे।
चर्चा में पता चला कि इन सारी समस्याओं के पीछे खरगोश है जो अब हर्बिवोरस एंटी पोचिंग एजुकेशनल युनिवर्सिटी का कुलपति है। उसके पढ़ाए कई प्राणी अब प्रोफेसर और शिक्षक हैं। सब के सब चिंतित हो उठे। उन्हें अपने जीवन का प्रश्न सताने लगा। तभी लोमड़ी खुशी से नाच उठी। यह देखकर सभी ने उसे डपट लगाई। कहा यहाँ हम अपने जीवन को लेकर चिंतित हैं और तुझे मजाक सूझ रही है? बेवकूफ कहीं की तुझे यही वक्त मिला है खुशी मनाने का?
लोमड़ी बोली अरे नहीं मुझे उपाय सूझा है इसकी खुशी हो रही है सब चुपचाप ध्यान से सुनो।
सारे जानवर चुप हो गए। लोमड़ी की चतुराई को सभी जानते थे, सो शांत होकर एकाग्रचितता से सबने बात कहने को लोमड़ी से कहा।
लोमड़ी बोली ऐसा करते हैं कि हम एक महा आयोजन करते हैं उसमें खरगोश और उसके साथियों ने हमारे राज्य का नाम देश विदेश में ख्यात किया होने का इसमें सम्मान करेंगे। बस यही एक चाल हमकों चलना पड़ेगी।
यहाँ तो जान के लाले पड़े है। फाका करना पड़ रहा है और इसकी सुनो यह सम्मान समारोह आयोजित करने का कह रही है। मान लो हम यह आयोजन करें भी तो क्या वो हमारा निमंत्रण भी स्वीकार करेंगे?
मगर इसके अतिरिक्त कोई उपाय न जानकर सब ने ध्वनिमत से प्रस्ताव पर सहमती दे दी। लोमड़ी को आगाह कर दिया। अगर इससे सफलता नहीं मिली तो उसे बक्षेंगे नहीं।
अब सारी जिम्मेदारी लोमड़ी की थी। जगह, मंच सज्जा निमंत्रण आदि सभी उसी को करना था। कौवे को उसने निमंत्रण देकर आने के लिए “कुरियर क्रो” बनाया।
कौवे को यह भी पता करना था कि इस युनिवर्सिटी का दफ्तर कहाँ है और कैसे प्रभावित करके निमंत्रण देना है। आखिर कौवे ने सफलता अर्जित की और निमंत्रण पत्र पहुँचा दिया।
खरगोश और उसके समस्त स्टाफ ने जब यह पत्र पढ़ा तो सार्वजनिक सम्मान की बात से वे बड़े प्रभावित हुए मगर एक बार उन्हें इस सद्भावना पर विश्वास नहीं जमा। उन्होंने अपने गुप्तचर जंगल में निगरानी पर लगवाए।
इधर माँसाहारी प्राणियों ने कार्यक्रम स्थल की साज-सज्जा, मंच, माला और माईक का बंदोबस्त, स्वागत के लिए हार फूल, स्वागत भाषण की तैयारी आदि प्रारंभ कर दी। यह खबर जब खरगोश को मिली तो उसका संदेह जाता रहा।
जंगल के बीच की खड़ी चट्टान मंच स्थल थी। चारो तरफ हरा भरा मैदान था खुला खुला था। यह मैदान एक तरफ नदी से घिरा था दूसरी तरफ पहाड़ था, तीसरी ओर जंगल का घना झुरमुट था। सुंदर स्थान पर मंच की बात और अभिनंदन की परियोजना का प्रकल्प गुप्तचरों से सुनकर उन्हें वहाँ जाना ठीक मालूम हुआ। फिर भी सावधानी जरूरी थी।
नियत समय और दिन को सारी बाते सुनिश्चित होने के बाद वे वहाँ जाने को तैयार हुए। बड़ी संख्या में जंगल के प्राणी इस समारोह में शामिल हो रहे थे। पास के राज्यों से भी अनेक विषिष्ट मेहमान यहाँ इस अवसर पर बुलवाए गए थे।
जोर शोर की तैयारियों के बीच मंच, माईक और माला का लोभ संवरण न कर युनिवर्सिटी के तमाम विशिष्ट शाकाहारी मंच पर पहुँचे। भाषण वगैरह तो सब धरा रह गया और चारों तरफ से घिरे इन विद्वानों को मांसाहारियों ने शिकार बना डाला। लोगों को शिक्षा देने और बेचने वाले कतिपय बुद्धिजीवी मात्र सम्मान की भूख में काल के ग्रास बन गए। तभी से यह मुहावरा चल पड़ा है कि “प्रसिद्धि और सम्मान की भूख बुद्धिमत्ता को निगल जाती है।”

राजेश घोटीकर
रतलाम

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