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वह भी एक युग था “सत्यमित्रानंद जी”

 

वह भी एक युग था ,
जो चला गया ।

संतों की भीड़
आती रही , जाती रही ।
नदियाँ बहती रहीं
ध्वजाएँ लहराती रहीं ,
समन्वय के बीज बो कर
फसल वह उगाता रहा ।

कुछ तो ग्लानि , कुछ अहम्
वह जला गया ।।

शब्द उसके ब्रह्म थे ,
सब अर्थ शिव संकल्प थे ,
पदरेणु में उसके
अमित संजीवनी ,
था विरल प्रेम
सुकोमल स्पर्श में ।

कुछ पाप धोये मनुज के ,
कुछ गला गया ।।

वह सनातन था ,
सनातन ही रहेगा कल ।
वह सुवासित था
सुवासित ही रहेगा फल ।
वह अमर था , अमर है ,
वह राष्ट्र का सम्बल।

वह भी एक युग था ,
जो चला गया ।।

पूज्य संतश्री सत्यमित्रानंद जी महाराज के श्रीचरणों
में विनम्र श्रद्धाञ्जलि।

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✍ डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, साहित्यकार

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