भयावह समय में गुलाब की महक से सराबोर सौहार्द अत्यंत जरूरी : रंजना फतेपुरकर
नरेंद्र गौड़
शाजापुर, 3 मार्च। एक अच्छी कविता काल के सारे दबावों को व्यक्त करती हुई कहीं न कहीं बची रहती है। कागज पर मुमकिन नहीं होता तो यह कविता जैहन में बची रहती है, जहां हथियार पराजित हो जाया करते हैं वर्तमान समय मनुष्य ही नहीं वरन् जीव जंतुओं और प्रकृति के लिए भी अत्यंत भयावह हो चला है। हत्या, लूटपाट, आगजनी और राजनीति के प्रपंचों में मनुष्य कसमसा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रेम, प्रकृति और सौन्दर्य ही उसे बचा सकते हैं।
इंदौर निवासी रंजना फतेपुरकर ने अपने कविता संकलन का नाम ‘महकते गुलाब’ शायद इसीलिए रखा है कि गुलाब की सुगंध से सराबोर होकर मनुष्य आपसी सौहार्द का अनुभव करे, क्योंकि ऐसा करना इस पृथ्वी को बचाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है। विगत दिनों रंजना जी का आगमन एक वैवाहिक कार्यक्रम के सिलसिले में शाजापुर हुआ था, तभी उनसे उनकी साहित्यिक यात्रा के बारे में चर्चा हुई।
प्रकाशन की गौरवमयी उपलब्धि
अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरस्कार प्राप्त रंजना जी ने हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया है और विभिन्न संस्थाओं द्वारा उन्हें करीब 50 पुरस्कार मिल चुके। देश की प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लगातार उनकी कविताएं प्रकाशित होती रही है। दूरदर्शन, आकाशवाणी के विभिन्न केंद्रों से भी उनकी रचनाओं का प्रसारण हो चुका है। एसएमएस संग्रह – तुम्हारे लिए, पंखुरियां पीले गुलाब की, कविता संकलन – रेशमी एहसास, कहानी संकलन – अनुराधा, लघुकथा संकलन – बूंदों का उपहार, मराठी काव्य संकलन – प्रीत चांदन्याची के अलावा बाल साहित्य के क्षेत्र में भी रंजना जी ने अपनी अभिरूचि का प्रदर्शन करते हुए बहुत कुछ लिखा है। टिमटिम तारे, रंग भरे मोर पंख कविता संकलन छप चुके हैं। इसके अलावा बच्चों के लिए बूंद क्यों बन गई मोती कहानी संकलन एवं चित्रमय कहानी लाल परी का प्रकाशन उनकी गौरवमयी उपलब्धि है।
पुरस्कारों की फेहरिस्त है लंबी
आपको अंबिका प्रसाद दिव्य साहित्य पुरस्कार, साहित्यायन सम्मान, मप्र तुलसी साहित्य अकादमी भोपाल द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। इन्हें प्राप्त पुरस्कारों की फेहरिस्त बहुत लम्बी है। इनकी काव्य कृति महकते गुलाब में अनेक स्वप्नदर्शी बिम्ब है और यह सभी मनुष्यता को बचाए रखने के लिए गढ़े गए हैं। छंद मुक्त होकर भी रंजनाजी की कविताएं प्रेम पगी मानवीय अनुभावों को बहुत खूबसूरती के साथ व्यक्त करती है।
प्रस्तुत है यहां रंजना जी की कुछ कविताएं
ख्वाबों की जमीं
जिंदगी में तुम्हारे एहसासों की
एक अजीब सी नमी है
प्यार की पंखुरियों में लिपटी
कोहरे की झीनी सी नमी है
चलो ओढ़ ले चाहत की ओढ़नी के
यादों के सायें
यही तो रूह में उतरती
ख्वाबों की हंसी
जमी है।
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जिक्र
जिक्र मेरा था पर उसमे
महकती यादें तुम्हारी थी
वो सुन्हरे ख्वाबों के दिन
वो चांदनी रातें तुम्हारी थी
ये सच है कि
न लिया था तुमने मेरा नाम जुबां पर
पर कोहरे में लिपटे सपने
वो प्यारी बातें हमारी थी।
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रिमिझम बारिश
तुम्हारी चाहतों की रिमझिम
बारिशों में भींगी हूं जबसे
आसमां में सुनहरे ख्वाब
बन बिखरी हूं तब से
जब भी छुआं तुमने
धरती की सौंधी महक को
ओढ़ लिए हैं रेशमी
एहसासों के सिलसिले तब से
महकते गुलाब तुम्हारी
राहों में बिखरे हैं जब से
रंग भरी ख्वाहिशें
फिजाओं में सिमट गई है तब से
जिस मोढ़ पर तुम हो
वही ठहरी है हसरतें चाहत की
तुम्हीं को पाने मेरी मंजिल
बहारों में थम गई है तब से।
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खुशनुमा रंग
मेरे ख्वाबों में तुम खुशनुमा रंग
ईबादत का भर देते हो
चाहत के खूबसूरत तोहफों संग
हसरतों को पनाह दे देते हो
तुम्हारे बिना रोशनी का हर रंग बेनूर है
तभी तो जिधर देखती हूं
उधर तुम ही तुम नजर आते हो