🔲 धामनोद के धम्मरत में आयोजित 10 दिवसीय शिविर में मौन साधना टूटने के बाद बोले साधक

🔲 मोबाइल और टीवी वाले दौर में 9 दिन तक मौन रहना बड़ी बात

🔲  नीरज शुक्ला
रतलाम, 4 मार्च। गौतम बुद्ध को बुद्धत्व प्रदान करने वाली साधना विपश्यना मन को व्याकुलता की पर्तों से मुक्ति दिलाने का उचित माध्यम है। यह अंतर्मन से खुश होना और खुशी बांटना सिखाती है। ध्यान की कई पद्धतियां प्रचलित हैं लेकिन यदि किसी पद्धति को पूर्ण कहा जा सकता है तो वह विपश्यना साधना ही है।

यह कहना है विपश्यना साधना के जरिए मन को नियंत्रित करने का गुर सीखने वाले साधकों का जो यहां धामनोद स्थित विपश्यना साधना केंद्र में 10 दिवसीय निःशुल्क शिविर में भाग ले रहे हैं। नौ दिनों तक मौन रहने के बाद बुधवार को साधकों ने अपने अनुभव साझा किए। सभी ने अन्य ध्यान साधना को बाहरी जाग्रति तो विपश्यना को आंतरिक जाग्रति में कारगर बताया। शिविर में भाग ले रहे 25 साधकों में भारत के विभिन्न राज्यों के अलावा अमेरिका, फ्रांस और इटली के साधक भी शामिल हैं।

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केंद्र आचार्य डॉ. एन.एस. वाधवानी व शारदा वाधवानी ने बताया ध्यान क्रिया भोपाल से आए आचार्य प्रकाश गेडाम के मार्गदर्शन में हुई। शिविर का समापन 5 मार्च को होगा।

इटली की अन्ना ने मां से सुना था, साधना पहली बार की

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एक वर्षीय भारत भ्रमण पर निकली इटली की अन्ना भाषा विज्ञान की छात्रा हैं। मां लूसिया से कई बार विपश्यना के बारे में सुना था लेकिन पहले कभी की नहीं थी। भारत भ्रमण के दौरान रतलाम में शिविर का पता चला तो जयपुर से सीधे यहां चली आईं। बकौल अन्ना उन्हें अन्य शहरों की तुलना में वाराणसी काफी पसंद आया। वे इसी साल अप्रैल में इटली लौटेंगी।

जानकारी मिली तो शिविर में आने से खुद को रोक नहीं पाए अमेरिका के एंड्रियू

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अमेरिका के कैलिफोर्निया निवासी एंड्रियू फेसबुक में प्रोजेक्ट मैंनेजर हैं। आवश्यक कार्य के सिलसिले से भारत आना हुआ। यहां विपश्यना शिविर की जानकारी मिली तो खुद को रोक नहीं पाए। साधना की इस पद्धति के बारे में दोस्तों से सुना तो काफी था लेकिन अनुभूति पहली बार हुई।

फ्रांस के थॉमस के अनुसार अनुभूति व लाभ शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल

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वाइन के लिए प्रसिद्ध फ्रांस के बोर्दोयास्क शहर के थॉमस के अनुसार दर्द को समझते हुए भी प्रतिक्रिया को जाहिर नहीं करना बड़ी बात है। विपश्यना साधना में इसका अभ्यास एक अलग अनुभूति है जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। यह व्यक्ति को खुद से लड़ना सिखाती है।

पहले 15 मिनट भी दुश्वार था, अब 2 घंटे तक एक जगह बैठ सकते हैं

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केरल के महेश टी.एम. विधि स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। फुटबॉल खेलने के दौरान उनके पैर के मांसपेशियां क्षतिग्रस्त हो गईं थी जिससे 15 से 20 मिनट भी एक स्थान पर एक स्थिति में बैठ पाना मुश्किल था। विपश्यना साधना करने के बाद अब 1 से 2 घंटे भी आसानी से एक जगह बैठ सकते हैं। यह साधना इच्छाशक्ति मजबूत करने का बेहतर उपाय है।

पूरी तरह वैज्ञानिक पद्धति है विपश्यना ध्यान साधना

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उज्जैन के मयंक शर्मा थाईलैंड में मर्चेंट नैवी में चीफी इंजीनियर हैं। शर्मा के मुताबिक बाहरी तौर पर खुशी मिल सकती है लेकिन अंतर्मन से खुश होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। विपश्यना व्याकुलता की पर्तों से मुक्ति दिलाने के साथ ही अंतर्मन से खुश होना और खुशी बांटना सिखाती है। यह पूरी तरह वैज्ञानिक साधना पद्धति है।

गहराई वाली ध्यान साधना जो भेदभाव से दूर रहना सिखाती है

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हरीश सकलानी उत्तराखंड के नैनीताल निवासी होकर हाईकोर्ट एडवोकेट हैं। वे बताते हैं ध्यान साधना के अन्य प्रकार भी देखे और की लेकिन उसमें गहराई नहीं थी। विपश्यना गहराई वाली साधना है जिसे पूर्ण कह सकते हैं। इसे करने वाला हर तरह के भेदभाव से परे सिर्फ मैत्री देने पर विश्वास करता है।

तनाव मुक्ति और धैर्य बढ़ाने का माध्यम

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हरियाणा से आए नवीन धुल व उनकी मां दर्शना धुल ने भी शिविर में साधना की। दोनों को धामनोद का साधना केंद्र और यहां का भोजन बहुत पसंद आया। दोनों ने ही इसे आंतरिक अंतर्द्वंद्व तथा तनाव मुक्ति का सबसे अच्छा माध्यम बताया। नवीन ने तो लगातार 8 से 10 शिविर करने की इच्छा जताई।

विपश्यना से मनोचिकित्सा के क्षेत्र में रिसर्च करेंगे डॉ. आनंद

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मूलत: कोलकाता के निवासी डॉ. आनंद चौहान नोएडा में रहते हैं। पोलैंड से डॉक्टरी की पढ़ाई की है। 10 साल तक जीवन के उतार-चढ़ाव और अन्य झंझावातों को भी झेला। मानसिक शांति के लिए कई प्रकार के मेडिटेशन किए लेकिन सब झूठ और आडंबर ही लगा। दोस्तों से पता चलने पर गूगल पर सर्च किया तो रतलाम में आयोजित शिविर का पता लगा। यहां आकर खुद को जाना। उन्हें लगा कि वे जो खोज रहे थे वह मिल गया। अब विपश्यना से मनोचिकित्सा के क्षेत्र में रिसर्च करना चाहते हैं।

सेवानिवृत्त तहसीलदार पति बोलते बहुत थे इसलिए शिविर में ले आईं

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पेशे से गृहिणी जावरा की इलादेवी बोस को एक स्थान पर बैठने में तकलीफ होती थी। नवंबर पहली बार विपश्यना की तो तकलीफ में कमी आई। उसी दिन तय कर लिया परिवार के हर सदस्य को लेकर आई। सेवानिवृत्त तहसीलदार पति जगदीश ज्यादा बोलते हैं लेकिन 9 दिनी मौन साधना के दौरान चुप रहना सीख गए।

खुद को खोजना सीखा, यहां सिर्फ मैं था और कोई नहीं

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मेरठ के पीयूष तोमर भी मौन साधना से काफी प्रभावित दिखे। दिल्ली में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहे पीयूष के मुताबिक आधुनिकता और तनाव भरे जीवन में खुद से साक्षात्कार मुश्किल है लेकिन यहां सिर्फ मैं था और कोई नहीं। विपश्यना खुद को खोजना और अपनी प्रज्ञा जागृत करने की साधना पद्धति है।

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10 दिन में तीन चरणों में पूरी होती है साधना

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आचार्य प्रकाश गेडाम ने बताया 10 दिन के दौरान विपश्यना ध्यान साधना तीन चरण में पूरी होती है। विपश्यना साधना मे शील, (हिंसा, चोरी, व्यभिचार, झूठ एवम् नशे से दूर रहना), समाधि (मन को वश मे करना) तथा प्रझा (मन निर्मल करना) सिखाया जाता है। अर्थात सदाचार का पालन करने हुए मन को वश मे करने का अभ्यास करते हुए मन निर्मल करना ही विपश्यना है। मन के विकार, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ, भय, अहंकार, वासना आदि दुख के कारण है। शिविर के शुरुआती नौ दिनों में इन्हें कम करने की ट्रेनिंग दी जाती है। दूसरा चरण मौन साधना का होता है जो पूरे नौ दिन तक चलती है। यह साधना नौवें दिन सुबह 9 बजे टूटती है। इसमें साक्षीभाव, तटस्थ भाव देखते हुए समता में रहना और मन के विकारों को दर करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। तीसरे चरण में 10वें दिन शील, समाधि और प्रज्ञा का अभ्यास कराया जाता है। इस दिन सुबह 9 से 10 बजे तक मैत्री की साधना भी होती है। आचार्य गेडाम के अनुसार शिविर में साधकों की दिनचर्या सुबह 4.30 जे शुरू हो जाती है और रात 9.00 बजे तक चलती है। इस दौरान रोज करीब 10 घंटे मेडिटेशन होता है।

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