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जिला प्रशासन बेखबर : जिला चिकित्सालय में डॉक्टरों की मनमानी, मरीजों की फजीहत

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🔲 स्वास्थ्य सुविधाओं की बजाय साफ-सफाई देख कर चली जाती है डिप्टी कलेक्टर

🔲 700 से 800 मरीज आते हैं रोज

🔲 कोविड-19 के अलग ओपीडी बावजूद जनरल ओपीडी में मरीजों से दूर व्यवहार

🔲 शहर के निजी चिकित्सालय भी है बंद

हरमुद्दा
रतलाम, 23 मई। कोरोना वायरस की आड़ में अन्य बीमारियों का उपचार भी जिला चिकित्सालय में
नहीं हो रहा है। जिला चिकित्सालय में मरीजों की फजीहत हो रही है और चिकित्सक अपनी मनमानी कर रहे हैं। 9 बजे से ड्यूटी समय होता है और चिकित्सक 11 बजे तक आ रहे हैं। इस मुद्दे पर जिला प्रशासन बेखबर है।

लॉक डाउन के चलते सभी से स्वास्थ्य की दृष्टि से परेशान हो रहे थे, लेकिन जब से शहर में पॉजीटिव मिले, तब से निजी चिकित्सालय और क्लीनिक बंद कर दिए गए। नतीजतन मरीज काफी परेशान है। ऐसे में मरीज जिला चिकित्सालय की ओर रुख कर रहे हैं लेकिन वहां पर उन्हें उपचार नहीं मिल रहा है।

बिना परीक्षण के सोनोग्राफी की सलाह

मुद्दे की बात तो यह है कि जो डॉक्टर बैठे हुए हैं वह भी मरीजों से ऐसे व्यवहार कर रहे हैं मानो वे कोरोनावायरस संक्रमित हो। गुरुवार दोपहर में करीब 1 बजे 70 वर्षीय महिला जब पेट दर्द की शिकायत लेकर जिला चिकित्सालय के कक्ष क्रमांक चार में पहुंची और अंदर जाने लगी तो चिकित्सक ने बाहर ही रोक दिया। बिना परीक्षण किए सोनोग्राफी करवाने और गोली का नाम लिखकर भगा दिया गया। हरमुद्दा ने इस संबंध में कलेक्टर रुचिका चौहान को भी जानकारी दी गई। लेकिन उसका असर शनिवार तक नजर नहीं आया।

बिना निष्कर्ष के दवाई

पेट दर्द की शिकायत पर मां को लेकर आए इसरार रहमानी ने बताया मरीज चिकित्सक से कहता है पेट दुख रहा है। दवाई दे दी, जबकि पेट सामान्य भाषा होता है। कहां दुख रहा है, यह तो चिकित्सक परीक्षण के उपरांत ही बता सकता है? अपेंडिक्स है कि क्या है? कहां पर कितना तेज दुख रहा है, कहां पर क्या स्थिति है? परीक्षण करने के उपरांत ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है। पेट दर्द से राहत की दवा तो मेडिकल स्टोर से भी मिल जाती है। फिर चिकित्सक किस बात के मोटी मोटी तंखा ले रहे हैं? जिला चिकित्सालय में डॉक्टर मरीजों का उपचार न करते हुए मरने के लिए छोड़ रहे हैं।

कोविड-19 ओपीडी है अलग

उल्लेखनीय है कि जिला चिकित्सालय में कोरोना वायरस संक्रमण के संदिग्धों की जांच के लिए कोविड-19 ओपीडी अलग से है। इसके अलावा अन्य मरीजों के लिए ओपीडी है। जहां पर चिकित्सकों को सुबह 9 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक एवं 3 बजे से शाम 4 बजे तक मरीजों का परीक्षण करना है। चिकित्सकों और स्वास्थ्य कर्मियों को जहां कोरोना योद्धा बताया जा रहा है, वहीं जिला चिकित्सालय में आम मरीजों के लिए तैनात चिकित्सक अपनी मनमानी कर रहे हैं। ओपीडी में उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। नतीजतन मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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700 से 800 मरीज जाते हैं रोज

सूत्रों के अनुसार जनरल ओपीडी में करीब 12 चिकित्सकों की ड्यूटी रहती है लेकिन अधिकांश मस्त मलंग हो गए हैं। कभी 11 बजे आते हैं। तो कभी 12 बजे और घूम फिर कर चले जाते हैं। 3 बजे बाद तो ओपीडी में मिलते ही नहीं। जबकि बीमारी से परेशान मरीज सुबह 8:30 बजे से आ जाते हैं। पर्ची बनाने वाले केंद्र पर बताया गया कि इन दिनों 700 से 800 मरीज रोज आ रहे हैं, लेकिन चिकित्सकों की लापरवाही हद दर्जे की बढ़ रही है। निजी प्रैक्टिस कर अपना व्यवसाय कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार चिकित्सालय के कर्मचारी जो चिकित्सकों के मुंह लगे हैं, वे परेशान मरीजों को चिकित्सकों के घर भेजने का कार्य कर रहे हैं।

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अन्य ओपीडी भी है मरीजों की सुविधा के लिए, 10.40 बजे तक चिकित्सक नहीं

जनरल ओपीडी के अलावा नेत्र, नाक कान गला, अस्थि रोग, दंत रोग ओपीडी भी है। लेकिन मरीज परेशान है। शनिवार को। 10:40 बजे तक अस्थि रोग की ओपीडी में चिकित्सक नहीं थे। महिलाओं पुरुषों की लंबी-लंबी लाइनें थी।

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रमेश बैरागी                           बाबूभाई मिस्त्री

डेढ़ घंटे से खड़ा हूं इंतजार में

हरमुद्दा को रमेश बैरागी ने बताया कि डेढ़ घंटे से खड़े हैं, लेकिन चिकित्सक नहीं है। जबकि पैर सिलेंडर गिरा था। इस कारण पैर में काफी दर्द है। हम चाहते हैं कि जल्दी से चिकित्सक देख और घर चले जाए, लेकिन यहां पर घंटों तक बाहर खड़ा रहना पड़ता है। इस कारण बीमारी फैलने का अंदेशा रहता रहता है। अभी 10 मिनट पहले चिकित्सक आए।

पता नहीं कब नंबर आएगा?

बाबूभाई मिस्त्री ने कहा कि 8:30 बजे से इधर-उधर घूम रहा हूं, लेकिन कोई देखने वाला नहीं है। 4 नंबर ओपीडी में भी गए थे लेकिन वहां पर गोली लिख दी और भेज दिया। कोई जांच नहीं करते हैं। फिर कहा तो वहां के डॉक्टर बोले की अस्थि रोग चिकित्सक को दिखा दो। अब पता नहीं है पर कब नंबर आएगा?

चिकित्सकों की मनमानी पर डिप्टी कलेक्टर भी निरंकुश

स्वास्थ्य सुविधाओं पर नजर रखने के लिए डिप्टी कलेक्टर सिराली जैन को नियुक्त किया गया है। सूत्रों के अनुसार
वह आती जरूर हैं, लेकिन साफ सफाई की व्यवस्था देख कर जाती है। लापरवाह और कर्तव्य के प्रति गैर जिम्मेदार चिकित्सकों की मनमानी पर डिप्टी कलेक्टर अंकुश नहीं लगा पा रही है। चिकित्सकों को कोई असर नहीं हो रहा है।

डॉक्टरों का बचाने का बयान

चिकित्सक ऑपरेशन थिएटर में होने के कारण ओपीडी में विलंब से आए होंगे। सभी चिकित्सक समय पर आ रहे हैं। डॉक्टर इतने अनुभवी हो गए हैं कि वे बिना परीक्षण के दवाई लिख सकते हैं। सोनोग्राफी ग्राफी का भी लिख सकते हैं। कोविड-19 की ओपीडी अलग है तो क्या हुआ? डॉक्टर चेकअप करके मर नहीं सकते।

🔲 डॉ. अनिल चन्देलकर, सिविल सर्जन, जिला चिकित्सालय, रतलाम

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