व्यंग्य : दशानन की मार्केट वैल्यू
⚫ आशीष दशोत्तर
⚫ मानव दशानन हो रहा है और दशानन मानव का स्थान लेने के लिए तैयार है। मनुष्य रावण बनने के लिए संघर्ष कर रहा है और दशानन अपने बढ़ते प्रभाव को मैनेज करने के उपायों पर चिन्तन । पहले किसे सफलता मिलती है यह तो राम ही जाने।⚫
आजकल उसी की मार्केट वेल्यू है। जहां देखो जिधर देखो उसी का चर्चा , उसी की बात, उसी का गुणगान । पुतला होकर भी वह जीवित मनुष्य पर भारी है। पुतला छोटा हो जाए तो चर्चा । पुतला ठीक से न जले तो चर्चा। पुतला बारिश में भीग जाए तो चर्चा । पुतला समय पर न बने तो चर्चा। पुतले में पटाखे कम हों तो चर्चा। पटाखे अधिक हो तो भी मुश्किल।
रावण का बढ़ता प्रभाव इसी से परिलक्षित होता है कि कभी रावण को सरेंडर होने के लिए मजबूर किया गया था मगर आज रावण के निर्माण के लिए टेंडर हो रहे हैं। रावण को बनाने के मनुष्य दिन -रात एक कर रहा है। मनुष्य अपनी निगरानी में रावण का निर्माण करवा रहा है। कई इंसानों की नौकरी दांव पर लगी रहती है अगर रावण समय पर खड़ा न हो।
तो मनुष्य की मुसीबत
फिर भी रावण तो रावण है। मनुष्य उसका क्या मुकाबला करे भला। लाख-दो लाख के रावण के खत्म होने में दो सेकंड लगे तो मनुष्य की मुसीबत। इतनी जल्दी रावण कैसे मर गया , इसे लेकर तरह-तरह की चर्चाएं शुरू हो जाती है। दरअसल मनुष्य चाहता ही नहीं कि रावण मरे । वह रावण को सदैव अपने सामने खड़ा देखना चाहता है।उसे इसीलिए आश्चर्य होता है कि रावण दो सेकंड में कैसे मर गया? वरना बुराई के प्रतीक को खत्म होने में दो सेकंड भी लगे तो मनुष्य को आत्मग्लानि होना चाहिए। उसे बेचैन होना चाहिए कि बुराई को खत्म करने में दो सेकंड भी क्यों लगे? मगर मनुष्य है कि रावण के आभा मंडल से प्रभावित हुए बिना चैन नहीं पाता है।
चर्चे ही चर्चे
रावण के चर्चे ही चर्चे हैं और इधर राम जी की ख़बर लेने वाला कोई नहीं । रावण के वारे-न्यारे और रामजी के मुकद्दर में सिर्फ नारे? इसे ही समय का फेर कहते हैं। इतना ही नहीं रावण की बढ़ती मांग, बढ़ते कद ,बढ़ती शान और बढ़ती संख्या से मानव चिंता में है। उसे दशानन से ईर्ष्या होने लगी है। इतनी वैल्यू बढ़ाने के लिए मार्केट में कितने हथकंडे अपनाने पड़ते हैं, उसे क्या पता? उसे तो बैठे-बिठाए सब मिल रहा है। इधर मानव को देखो दिन -रात अपने दो हाथों से बीस हाथों का काम कर रहा है। हर हाथ से कुछ न कुछ ले रहा है मगर मजाल है दूसरे को ख़बर हो जाए। कमाल ये भी है कि हर हाथ हर वक्त खाली ही दिख रहे हैं।
दशानन हो रहा मानव
मानव दशानन हो रहा है और दशानन मानव का स्थान लेने के लिए तैयार है। मनुष्य रावण बनने के लिए संघर्ष कर रहा है और दशानन अपने बढ़ते प्रभाव को मैनेज करने के उपायों पर चिन्तन । पहले किसे सफलता मिलती है यह तो राम ही जाने।
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