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“कोरोना और रिटायरमेंट”

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⚫ इन्दु सिन्हा “इन्दु”

⚫ नमिता चिंता मत करो जल्दी ठीक हो जाओगी। लेकिन उसकी घबराहट कम नहीं हुई, रात लगभग 9:00 बजे उसके हस्बैंड का फोन आया कि नमिता की डेथ हो गई। डॉक्टरों ने बताया कि लगभग महीने भर से बीमार थी। लेकिन ट्रीटमेंट ने लिया ही नहीं। नमिता का रिटायरमेंट भी दिसंबर में था। कहीं-कहीं ऐसी दुःखद बातें हो जाती है,जो मन में अनेक प्रश्नों को जन्म दे देती है। जिसका जवाब तो रहता है लेकिन मूक ही बने रहना पड़ता है। विवशता जो ठहरी।⚫

तीस सितंबर नजदीक था। उस दिन रेखा दीदी का रिटायरमेंट था| रेखा दीदी की खास सहेली नमिता से रेखा दीदी की अक्सर रोज बात हो जाती थी। दोनों के सेक्शन में बस दो मिनट का फासला ही था। सेक्शन में नमिता दीदी इंचार्ज थी और जनरल सेक्शन की इंचार्ज रेखा दीदी थी| रेखा दीदी का एक पैर पोलियो ग्रस्त था। जिससे उनको चलने में दिक्कत होती थी। लेकिन वह चल लेती थी। दोनों के सेक्शन के बीच में बस कॉरिडोर ही था। जिसे पार कर कभी नमिता रेखा दीदी के पास पहुंच जाती तो कभी रेखा दीदी नमिता के पास। इंचार्ज होने के कारण दोनों के पास वर्किंग टेबल नहीं थी। सुपरवाइजर थी। इसलिए फाइलें फारवर्ड करने के बाद टाइम ही टाइम था।


कभी-कभी चाय नाश्ते का दौर भी चलता था। अब चर्चा का विषय यह रहता था कि कोरोना वाला माहौल कब खत्म होगा,जिससे रिटायरमेंट की पार्टियां पहले जैसी होने लगेगी। पिछले दो वर्षों में कोरोना ने जीवन के हर रंग को छीन कर उस में धूल भर दी थी। सभी रंग फीके और बिना खुशबू के हो चले थे। यह इंतजार सिर्फ रेखा दीदी की रिटायरमेंट पार्टी का नहीं था, हर महीने रिटायरमेंट ऐसे ही होने लगे थे। जब से यह कोरोना आया है। कोरोनावायरस ने खुशियों में सेंध लगाई है। तब से ऑनलाइन कर्मचारियों को दो शब्द विदाई के कहकर विदा कर दिया जाता था, तो कभी वह भी नहीं होता। रिटायरमेंट के चेक घर के पते पर भिजवा दिए जाते। जो कमर्चारी के सीधे बैंक खाते में चले जाते थे।


अब तो ऑनलाइन वर्क होने से कर्मचारियों से मेल मुलाकात पर भी असर पड़ा है। कर्मचारियों में अजनबीपन बड़ा है।मुस्कुराहटों की जगह बोरियत ने ले ली है। दूसरे, तीसरे फ्लोर के सेक्शनों को लोग भूलते जा रहे हैं। ऑनलाइन फाइलें दौड़ रही हैं। ऐसे में बहुत से विषय दूसरे भी थे जिस पर कर्मचारी चर्चा करते रहते थे, वो भी बन्द हो गए है। ऑफिशियल चर्चाओं का दौर खत्म हो चला है। पहले की रिटायरमेंट की पार्टियों को याद करके कर्मचारी ठंडी आहें भरते रहते। नमिता का सेक्शन बड़ा था, वेतन संबंधित काम होते थे तो आवक जावक भी कर्मचारियों की अधिक थी। नमिता इंचार्ज थी इसलिए नमिता के सेक्शन के क्लर्क के पास जाने के पहले, नमिता की टेबल पर जाकर उसको हेलो,नमस्ते करते तब क्लर्क के पास जा पाते। फिर। वहीं पास की कुर्सियों पर बैठक भी जम जाती थी। कोरोनावायरस के पहले रिटायरमेंट पार्टियां ज्यादातर कर्मचारी बड़बड़ हनुमान जी के मंदिर में रखते थे। मीनू एक ही होता था जो मालवा वासियों को बेहद पसंद भी है, दाल बाफले, लड्डू, कढ़ी, चावल और गरम-गरम भुट्टे के भजिए।

अक्सर ही पार्टियां दोपहर में रखी जाती लंच टाइम में,जिससे कि कर्मचारी उस दिन घर नहीं जाकर ऑफिस से सीधे बड़बड़ पहुंच जाते। सुबह से चहल पहल रहती। रुपए इकठ्ठे किए जाते, बड़ा सा गिफ्ट खरीदा जाता। यह काम वेलफेयर सेक्शन करता। जिस दिन कोई कर्मचारी रिटायर होता उसी दिन सुबह सुबह एक नोट सभी सेक्शनों में पहुँच जाता। अपने अपने सेक्शन से इतनी राशि जमा कर वेलफेयर सेक्शन में भिजवाए कभी सौ रुपये तो कभी डेढ़ सौ रुपये। चर्चाओं का दौर भी चलता रहता,
महिला मंडली भी तैयारी में जुटी रहती।
लंच टाइम 1:30 बजे से शुरू होता था लेकिन जिस दिन रिटायरमेंट पार्टी होती थी लोग 12:30 बजे से बरबड़ जाने की भूमिका बनाने लगते थे।
ढोल वाले भी आने शुरू हो जाते थे। ढोल वाले, बाजे वाले, दोपहर बाद ही आते थे क्योंकि रिटायर होने वाले कर्मचारियों को सबसे पहले बड़े ऑफिसर के हाथों से चेक दिलवाया जाता।  उनका सम्मान किया जाता था। समय दोपहर तीन से चार के बीच का होता था। जब तक रिटायर होने वाले कर्मचारी की तरफ से बड़बड़ में जो पार्टी दी जाती थी वह भी हो जाती थी। रिटायर्ड कर्मचारी के परिवार वाले सुबह से ही रिटायर्ड कर्मचारी के सेक्शन में आ जाते थे। वह कर्मचारी अपने परिवार के साथ सब अनुभागों,विभागों में घूम घूम कर धन्यवाद देता जाता। और बधाइयां लेता जाता।(क्योंकि सर्विस के आखिरी दिन की औपचारिकता ही निभानी थी) ऐसा करते-करते दोपहर से शाम होने लगती। ऑफिस के मेन गेट पर परिवार वाले ढोल वालों के साथ जम जाते, फूलों से लदा रिटायर्ड कर्मचारी जाकर कार में बैठता या रथ में बैठ जाता।
यह माहौल जब तब नमिता की आँखों के सामने घूमने लगता। ईश्वर से प्रार्थना करती कि कोरोना जल्दी चला जाए ,क्योंकि रेखा दीदी नमिता की खास सहेली थी वह चाहती थी उसकी रिटायरमेंट की पार्टी अच्छे से हो जाए।


लेकिन कोरोनावायरस के नियम लागू कर दिए थे ,उसमें बहुत से कर्मचारियों के रिटायरमेंट का तो पता ही नहीं चला कब रिटायर हो गए ना फूल ना ढोल ना बाजा ना किसी प्रकार की कोई पार्टी। नमिता के पास जब कुछ महिलाएं आकर बैठी तब भी यही चर्चा होती कि माहौल चेंज हो जाए तो कुछ पार्टी हो सब आयोजन खत्म हो गए। महिलाओं का ग्रुप ऐसा ग्रुप था कि कभी पार्टी महिलाओं की तरफ से करता था कभी नहीं करता। हर महिला अपनी अपनी ढपली से अपना अपना राग अलापती।
हर एक महिला के लिए इनकी विचारधारा अलग होती ,पहले तो ग्रुप भी थोड़ा बड़ा था ,अब सिमटने लगा था। वजह माहौल या डर नही पता। जो महिलाएं इन पचड़ों में नहीं पड़ती थी, और थोड़ी दूरी बनाए रखी थी, वो महिलाएं इन गपोड़ी महिलाओं की नजरों में या तो घमंडी घोषित कर दी जाती या फिर अकड़ू। वैसे भी उन महिलाओं को कोई खास फर्क ही नहीं पड़ता था। ऑफिस घर के साथ उन्हें अपनी हॉबीज भी थी, जिसमें वह बिजी रहती थी|लगाई ,बुझाई,,इसकी,उसकी से वैसे भी वह दूरी बनाए रखती थी। घमंडी कहो या अकडू कोई मतलब नहीं था उनको।

आज नमिता के पास कुछ महिलाएं रेखा के रिटायरमेंट की पार्टी के लिए जमा हुई थी। कोरोना के कारण जनरल पार्टी जो पूरा विभाग करता था। वह अफसरों ने वैसे ही बंद की हुई थी। लेकिन सब महिलाएं मिलकर उनको पार्टी दे सकते हैं। महिलाओं से रुपए इकठ्ठे करने की जिम्मेदारी कविता ने संभाली वह महिलाओं से रुपए लेकर नमिता के पास जमा करेगी कि नमिता ही डिसाइड करेगी कि गिफ्ट क्या लाना है। नमिता ने भी अपनी सहमति दे दी थी। यह तय अगस्त के फर्स्ट वीक में ही हुआ था। इतने में नमिता को बड़े साहब ने बुला लिया तो वह बैठक वही खत्म हो गई। महिला अपने अपने सेक्शनों में चली गई। कविता ने अपने सेक्शन में जाकर महिलाओं को फोन करना शुरू कर दिया था। कुछ महिलाएं राजी हो गई कुछ महिलाओं ने सवाल भी किए ,कि जब सभी फंक्शन बंद किए हुए हैं तो यह पार्टी क्यों ? क्योंकि ऑफिसर किसी भी सेक्शन में भीड़ जमा होने के खिलाफ थे वह जानते थे कि यह महिला पार्टी लंबी चलती है और फिर कोरोना का डर।
कविता ने हार नहीं मानी वह कोशिश करती रही उन महिलाओं को मनाने की जो राजी नहीं हो रही थी |फिर कविता के दिमाग में एक ख्याल ने जन्म लिया कि वो रेखा के हेंडीकेप्ट होने के नाम पर सहानुभूति बटोर कर उन महिलाओ को राजी किया जाए। जो महिलाएं राजी नहीं हो रही है|यह सोचकर कविता ने मोबाइल करना शुरू किया, कुछ इस तरह, बेचारी अपाहिज है अपने बूढ़े बाप की देखरेख करती है, उस बूढ़े बाप को संभालने के चक्कर में बेचारी ने शादी नहीं की,भले ही इश्क दो चार से चला रखा हो। उससे अपने को क्या ?रिटायरमेंट पार्टी दे देते हैं बेचारी को।
कविता का ये तरीका कुछ काम कर गया, दो महिलाएं राजी हो गई ,बाकी दो ने मना कर दिया, कि कोरोना के माहौल में नियमों के खिलाफ काम नहीं करेंगी। बाद में अफसरों की डांट कौन सुनता रहेगा।

रेखा की रिटायरमेंट की पार्टी के लिए महिला पार्टी की सहमति मिल गई थी। सूची भी तैयार हो गई महिलाओं की ,लेकिन रुपए किसी महिला ने नहीं दिए थे, क्योंकि 30 सितंबर में अभी समय था लगभग डेढ़ महीना पड़ा था। गिफ्ट वगैरह पर चर्चा आए दिन चलती रहती थी। कि क्या खरीदा जाए ,तो उस समय तक हो सकता है होटल भी शुरू हो जाए इस प्रकार की चर्चाओं करोना से होने वाली मौतों की चर्चा में समय बीत रहा था साथ ही ऑफिस में काम का टेंशन भी था। इसी बीच राखी की छुट्टी आ गई उसके साथ दो सेटरडे संडे को मिलाकर 3 दिन की छुट्टी मिल गई थी। राखी के बाद ऑफिस खुलने पर नमिता ने सब को बताया कि उसकी तबीयत खराब थी। तबीयत खराब वाली बात महिला मंडली में फैली महिलाएं तबीयत पूछने नमिता के पास आने लगी पिछले 25 सालों में तबियत खराब की कोई शिकायत भी नमिता के मुंह से नहीं सुनी थी| महिलाएं अपनी सुविधा से ऑफिस टाइम में ही काम के दौरान नमिता के सेक्शन में जाने लगी, नमिता ने बताया उसको बुखार आया था ,गला भी बहुत खराब था ,मेडिसिन ली थी, लेकिन अब वह ठीक है कुछ एक ने सलाह दी कि डॉक्टर से जांच करवा लेनी चाहिए। डॉक्टर के नाम से ही नमिता घबरा गई थी डॉक्टर के पास जाने पर कोरोना टेस्ट लिख देगा। नहीं ,बाबा नहीं, जाना, डॉक्टर के पास। उस समय कोरोना वैक्सिंग का पहला डोज लग रहा था । और जाँच भी हो रही थी। रेखा ने भी समझाया अपनी सहेली को टेंशन मत लो ऐसा कुछ भी नहीं होगा। लेकिन नमिता नहीं मानी। ऑफिस नियमित आती रही। कभी कभी बोलती कि सर्दी खांसी पूरी तरीके से ठीक नहीं हुई है ,छाती में ऐसा लगता है जैसे भारीपन हो कुछ जमा हो, परेशानी कोई नहीं है। कोई प्रॉब्लम नहीं है, इसलिए डॉक्टर के पास जाना कोई समझदारी नहीं है।

रेखा ने ,सेक्शन के दूसरे लोगों ने भी नमिता को बहुत समझाया।लेकिन वह नहीं मानी इन्हीं दिनों घर पर अचानक उसे रात को साँस लेने में तकलीफ होने लगी ,तो उसके हस्बैंड ने उसको हॉस्पिटल में एडमिट करवाया बड़ी मुश्किल से एडमिट होने के लिए मानी। टेंशन और डर के मारे उस्का बीपी रहकर बहुत हाई हो रहा था। एक दिन एडमिट रही सांस लेने वाली प्रॉब्लम उसकी दूर हो गई,जिद करके डिस्चार्ज हो गई। उसे कोई प्रॉब्लम नहीं है, उसको डिस्चार्ज कर दो डॉक्टर ने हस्बैंड से कहा कि आप अपनी जिम्मेदारी पर ले जा रहे हैं। नमिता की तबीयत ठीक नहीं है। पर नमिता के जिद्दी स्वभाव को हसबेंड भी जानते थे। नमिता डिस्चार्ज होकर घर आ गई। दो दिन बाद फिर ऑफिस आ गई सब ने मना किया रेस्ट करो घर पर। नमिता बोलती थी घर पर टाइम पास नहीं होता है ,हस्बैंड जॉब पर चले जाते हैं बच्चे रतलाम के बाहर दूसरे शहरों में थे। ऑफिस आओ तो सब से बात करो, ऑफिस का काम करो तो समय का पता नहीं चलता। उसका ये तर्क सुनकर सभी चुप रहे गए थे |क्या बोले ?

सितंबर महीना शुरु हो चुका था महिलाओं की मंडली सक्रिय थी। शायद माहौल खुल जाए ,तो रेखा दीदी की विदाई पार्टी की तैयारी की जाए। सब इंतजार में थे। ऐसे ही अचानक नमिता को रात में फिर सांस की तकलीफ हुई, उसके हस्बैंड रात को ही उसी हॉस्पिटल में ले भागे डॉक्टरों ने नमिता को देखते ही इंदौर रेफर कर दिया ,लेकिन नमिता तैयार नहीं हो रही थी। जैसे तैसे उसे इंदौर लेकर गए ,इंदौर पहुंचकर जब एडमिट हुई, रात तक तबीयत में उसके थोड़ा सुधार हुआ ,तो उसने दुसरे दिन सुबह 11 बजे ऑफिस में अपनी सहेली रेखा को फोन लगाया उसके फोन पर सभी महिलाओं ने दूसरे स्टाफ ने बात की हिम्मत दी, नमिता चिंता मत करो जल्दी ठीक हो जाओगी। लेकिन उसकी घबराहट कम नहीं हुई, रात लगभग 9:00 बजे उसके हस्बैंड का फोन आया कि नमिता की डेथ हो गई। डॉक्टरों ने बताया कि लगभग महीने भर से बीमार थी। लेकिन ट्रीटमेंट ने लिया ही नहीं। नमिता का रिटायरमेंट भी दिसंबर में था। कहीं-कहीं ऐसी दुःखद बातें हो जाती है,जो मन में अनेक प्रश्नों को जन्म दे देती है। जिसका जवाब तो रहता है लेकिन मूक ही बने रहना पड़ता है। विवशता जो ठहरी।

इन्दु सिन्हा “इन्दु”
कहानीकार/कवयित्री
रतलाम (मध्यप्रदेश)

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