मेरी नज़र से : भाषा विवाद के बहाने महाराष्ट्र में चुनावी शतरंज की बिसात
यदि भाषाई अराजकता रही तो अवसर वादी हर जगह हिंसक अराजक वातावरण बना देंगे। वीडियो वायरल होते ही सत्ता रूढ़ दल भड़क गया। संकीर्ण राजनीति ने लोगों को स्वतंत्र की जगह "स्वछंद" बना दिया है और लोकतंत्र की जगह "भोग तंत्र "चल रहा है। याद रहे राष्ट्रीय "डंडे "में ही झंडा फहराता है।
⚫ डॉ. प्रदीपसिंह राव, महाराष्ट्र से सीधे रिपोर्ट
मै इन दिनों महाराष्ट्र के पुणे, मुंबई की हवा पानी ले रहा हूं।राजनीतिक तल्खियों के लिए यूं भी महाराष्ट्र विख्यात रहा है। शरद पवार और ठाकरे परिवार का दबदबा आज भी छाया हुआ है, हालांकि बाल ठाकरे की शेर की दहाड़ कम पड़ चुकी है और उनका कोई तोड़ भी नहीं है। 20 बरसों बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे भाषा विवाद के मामले में एक मंच पर अवसर की तलाश में आए हैं।

मुख्यमत्री देवेंद्र फडणवीस के राज्य सरकार के आदेश, जिसमें पहली से तीसरी कक्षा में मराठी, अंग्रेजी के साथ हिंदी भी अनिवार्य होगी, इसका विरोध राजनीतिक रंग में डुबो दिया गया।
खेली बैकफूट की राजनीति
मामला इतना तूल पकड़ गया कि ठाकरे भाइयों ने मिलकर भाषा विरोधी रैली निकाल डाली, हालांकि फडणवीस ने वो फैसला वापस ले कर बैकफूट की रणनीति खेली है, लेकिन तब तक महाराष्ट्र के मुंबई, ठाणे जैसे दो तीन इलाकों में मराठी न बोलने के मुद्दे पर राज ठाकरे की महाराष्ट्र नव निर्माण (मनसे) और उद्धव ठाकरे की शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने कथित रूप से मारपीट कर दी। इसके वीडियो वायरल होते ही सत्ता रूढ़ दल भड़क गया। सीएम ने साफ बोला कि मराठी का सम्मान अपनी जगह कायम रहेगा, लेकिन अन्य भाषा भाषियों का विरोध और उन पर हिंसा कानूनन सहन न की जाएगी। महानगर पालिका मुंबई (BMC) के चुनाव पास में हैं और सारा जुगाड इसी के लिए चलता दिखाई दे रहा है।
2300 साल पुराना है मराठी भाषा का इतिहास

मराठी भाषा देश में प्रचलित 22 मान्यता प्राप्त भाषाओं में से तीसरी सबसे प्रचलित भाषा है जिसका इतिहास 2300 वर्ष पुराना है। लगभग 8 करोड़ लोग मराठी बोलते और लिखते हैं, लेकिन स्थानीय नेताओं द्वारा रह वासियों को "जबरन इसी को बोलने की दादागिरी लोकतांत्रिक देश में एक अपराध है। बिहार के नेताओं ने धमकी दी है कि यदि महाराष्ट्र, मुंबई में हमारे लोगों को धमकी दे कर मारोगे तो बिहार में मराठियों आ कर बताओ, फिर हम पटक पटक कर मारेंगे।
हो सकता है हर जगह भाषाई हिंसक वातावरण
वैसे मराठा और मराठी भाषा का इतिहास 2300 वर्ष पुराना है जो संस्कृत की महाराष्ट्री प्राकृत भाषा का अपभ्रंश है, ये प्राचीन स्पतवाहन राजकाल में भी प्रचलित थी। सैकड़ों सालों से मराठाओं की सत्ता दक्षिण, मध्य और पश्चिम क्षेत्र में फैली हुई थी।आज भी मध्यप्रदेश में हजारों महाराष्ट्रीयन रहते हैं। गोवा, उत्तरप्रदेश, आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों में मराठा आज निवासरत है। यदि भाषाई अराजकता रही तो अवसर वादी हर जगह हिंसक अराजक वातावरण बना देंगे। बंगाल पहले से ही क्षेत्रवाद का शिकार है। आजादी के बाद हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्जा दक्षिण की राजनीति के कारण न मिला। चीन, जापान, जर्मनी, रूसी, अरबी डीबी अपनी भाषा ही बोलते हैं। भारत को यदि उन्नति करनी है तो कठोर राष्ट्रवाद ही लाना होगा। यहां की
लोकतंत्र की जगह चल रहा "भोग तंत्र"
संकीर्ण राजनीति ने लोगों को स्वतंत्र की जगह "स्वछंद" बना दिया है और लोकतंत्र की जगह "भोग तंत्र " चल रहा है। याद रहे राष्ट्रीय "डंडे " में ही झंडा फहराता है।

Hemant Bhatt