साहित्य सरोकार : अपने बीच की अपनी कविताएं
कविताओं को पढ़ा जाना इसलिए आवश्यक है कि आज के दौर में जब व्यक्ति अपने रिश्तों को भूलता जा रहा है, अपने प्राकृतिक सरोकारों से विमुख होता जा रहा है, ऐसे में संजय परसाई की कविताएं आशा जगाती हैं। ये कविताएं एक बेहतर कल की संभावना व्यक्त करती हैं।

⚫ आशीष दशोत्तर
कविता सिर्फ़ शब्दों की जुगाली नहीं वरन भावनाओं एवं संवेदनाओं का ऐसा विस्तृत फलक है जहां व्यक्ति की अपनी भावनाएं, उसके अपने विचार और उसके अपने संस्कार भी झलकते हैं ।संजय परसाई 'सरल' की रचनाएं भी कमोबेश ऐसी ही विथिकाओं से गुज़रती हैं।
उनकी रचनाओं में कोई लाग- लपेट नहीं है, कोई छल- कपट नहीं है, कोई दुराव- छिपाव नहीं है। इसीलिए जब इन कविताओं से कोई गुज़रता है तो वह इनसे वाबस्ता होता चला जाता है । उसे कविता अपनी प्रतीत होती है।
किसी भी रचना की सफलता का यही पैमाना होता है कि वह अपने पाठक को सीधे-सीधे प्रभावित करे। कविता के अपने शिल्प और बिम्ब अलग हो सकते हैं ,लेकिन उसका संप्रेषित होना बहुत आवश्यक है। आज कविता के सामने संकट यही है कि वह इतनी अधिक उलझी प्रतीत होती है कि पाठक उससे ख़ुद को जोड़ नहीं पाता है।संजय परसाई की कविताओं में ऐसी उलझन नहीं है ।
ये कविताएं अपने घर -परिवार की कविताएं हैं। ये कविताएं अपनी प्रकृति और साझा संस्कृति की कविताएं हैं । ये कविताएं दरकते रिश्तों को मज़बूत करती कविताएं हैं । ये कविताएं अपने गांव और गलियों से गुज़रती कविताएं हैं । ये कविताएं अपनी मित्रता और अपने स्नेह को लुटाती कविताएं हैं । इन कविताओं के भीतर बहुत सहज और सरल संदेश भी छुपा हुआ है । ये कविताएं शिक्षित भी करती है और दीक्षित भी ।
इन कविताओं को पढ़ा जाना इसलिए आवश्यक है कि आज के दौर में जब व्यक्ति अपने रिश्तों को भूलता जा रहा है, अपने प्राकृतिक सरोकारों से विमुख होता जा रहा है, ऐसे में संजय परसाई की कविताएं आशा जगाती हैं। ये कविताएं एक बेहतर कल की संभावना व्यक्त करती हैं।
⚫ आशीष दशोत्तर
12/1, कोमल नगर
रतलाम (मप्र)
मोबा. 9827084966
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काव्य संग्रह - हक़
कवि - संजय परसाई 'सरल'
मूल्य - 200/-
प्रकाशक - इंक पब्लिकेशन, प्रयागराज