सामयिक विश्लेषण : इजरायल ईरान युद्ध...बारह दिन चले अढ़ाई कोस

वहां हर देश में उनकी सबसे बड़ी ताकत देशप्रेम और सत्ता प्रमुख के प्रति आस्था है। उनकी समृद्धि में देश की हर संपत्ति से बड़ी उनकी राष्ट्रीय ईमानदारी है,वहां राजनीति भी अनुशासित है और सत्ता भी।

सामयिक विश्लेषण : इजरायल ईरान युद्ध...बारह दिन चले अढ़ाई कोस

डॉ. प्रदीपसिंह राव, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के व्याख्याकार

मध्य पूर्व में तीसरे विश्व युद्ध की कगार पर बैठे तनाव की आग लगता है ठंडी हो गई। अचानक शुरू हुए इजरायल ईरान युद्ध का अचानक विराम हो जाना कोई अचरज नहीं है।12दिन चले इस युद्ध को यदि कोई बच्चा भी देख रहा होगा तो वो इसे निरर्थक युद्ध ही मानेगा। एक वीडियो गेम की तरह यह लड़ाई पूरे विश्व ने टीवी पर देखी और घर बैठे रोचक आनंद लिया, लेकिन इसमें किसका  कितना बिगड़ा ये किसी ने सोचा।

वैश्विक आंकलन करें तो सबसे अधिक किरकिरी दो लड़ाकू देशों से ज्यादा दो आग लगाऊं, आग भड़काऊ, अवसरवादी देशों की हुई। एक अमेरिका, दूसरा पाकिस्तान। ट्रंप एक मदारी की भूमिका में सिर्फ तमाशा दिखाने वाले लग रहे थे, जिनको दुनिया को सिर्फ ये दिखाना था कि वह एक ऐसे वैश्विक नेता और सुपर पावर हैं जिनकी पूरी दुनिया में  तू ती बोलती है। उनकी एक धमकी से बड़े बड़े देश हिल जाते हैं, लेकिन हुआ क्या ? 12दिन चले अढ़ाई कोस।

फील्ड मार्शल बन गए फेल्ड मार्शल

अरबों रुपयों के खर्च और दो देशों की पतली अर्थ व्यवस्था करने के सिवा उन्हें क्या मिला। सारी दुनिया ने देखा जबसे दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं, उनकी फजीहत ही हो रही है। पहले रूस यूक्रेन न माने, फिर एलन मस्क ने उनके तारे ज़मी पर कर दिए। फिर भारत पाक युद्ध के फटे में पांव डाल कर मुंह की खाई। उनके "मोडी "(मोदी) ने व्हाइट हाउस का निमंत्रण ठुकरा दिया तो मुनीर बलि का बकरा बना। फील्ड मार्शल फेल्ड मार्शल बन गए।

अधिक क्षति हुई है छोटे से देश की

ईरान-इजरायल युद्ध के बीच में, रहा सहा गुरूर छोटे से कतर जैसे देश ने धमकी के अंदाज में अमरीकी सैन्य अड्डे पर हल्का सा हमला कर के निकाल दिया। ईरान पर नियम विरुद्ध  तीन  प्रमुख परमाणु  ठिकानों पर B /2 शक्तिमान बम वर्षकों से 12 बम गिराए, लेकिन कोई बड़ा नुकसान न हुआ। ईरान चतुर निकला। इजरायल और यहूदियों के हमदर्द बने ट्रंप ने इजरायल का क्या बचा लिया? सबसे अधिक क्षति हुई है छोटे से देश की जो ईरान से 60 गुना छोटा है। 

शक्तिशाली एंटी मिजाइल डोम भी कमजोर

पूरे विश्व को ये भी पता चल गया कि इस देश का दुनिया का सबसे शक्ति शाली "एंटी मिज़ाइल डोम "भी कमजोर है। ईरान की शक्तिशाली मिसाइलों ने इसकी धज्जियाँ उड़ा कर रख दी। इजरायल  को लंबा समय लगेगा। गाजा, हमास के मामले में भी उसकी गति धीमी हो जाएगी। हां, उसे बड़े फायदे भी हुए की मोसाद की ताकत पूरी दुनिया को पता चली, जिसने इतनी पक्की सूचनाएं इजरायल को दी जिसके कारण इजरायल ने ईरान के 19 परमाणु वैज्ञानिकों को और कई सैन्य प्रमुखों को मार डाला।परमाणु ठिकाने प्रभावित किए जिनसे ईरान कुछ पीछे चला गया है, लेकिन वो इतना समृद्ध है कि बहुत जल्दी "डेमेज कंट्रोल "कर लेगा। इस युद्ध में नीति देशों के सपोर्ट की भी कलाई खुल गई। खुल कर कोई न आया, सिर्फ चापलूस ब्रिटेन को छोड़ कर, उसने भी सिर्फ मोरल सपोर्ट किया।

ट्रंप का बड़बोला पान करवाता रहेगा युद्ध

ईरान के आसपास अमेरिका ने 7 खाड़ी देशों में मिलिट्री बेस बना रखे हैं। ईराक, बहरीन, कतर, यूएई, ओमान, सऊदी अरब प्रमुख हैं। इन्हीं देशों  के अमरीकी सैन्य अड्डों को ईरान भी निशाना बना सकता है और कतर ने कर दिखाया। ओमान ने भी धमकी दी थी। शिया बहुल देश ईरान के साथ हैं। अब ईरान चीन और रूस की मदद से भारी सुरक्षा कवच ओढ़ लेगा और किसी की धमकी से न डरेगा।परमाणु हथियार बना कर रहेगा।उसके पास तेल सप्लाई रोकने की भी ठोस रणनीति है। ईरान और इजरायल युद्ध का अंत नहीं हुआ है, जिसका श्रेय ट्रंप लेना चाहेंगे। नाटो देशों की बैठक के ठीक पहले वे चाहते थे कि विराम लग जाए, ताकि उनकी वाह वाही हो, जबकि उनके आग्रह पर कतर ने ईरान प्रमुख को युद्ध रोकने की सलाह दी, तब ईरान माना है। इजरायल को तो जो ट्रंप बोले वह करता है। ट्रंप का बड़बोला पन युद्ध करवाता रहेगा। 

महाशक्ति को टिकवा दिए घुटने

इसलिए ये युद्ध सिर्फ "टाईम आऊट" पर है। कभी हमेशा के लिए थमेगा नहीं। भारत को बड़ा फायदा हुआ है कि वह तटस्थ रहा और पाकिस्तान का असली चेहरा मुस्लिम देशों ने और विश्व ने देख लिया। ईरान ने अमेरिका के ले का बदला ले लिया है।कूटनीतिक रणनीति में उसने महाशक्ति को घुटने टिकवा दिए।आज उसकी छवि इजरायल स्मारिका से भी साफ है। 

राजनीति और सट्टा अनुशासित

विगत वर्ष मैने मध्यपूर्व के देशों की यात्रा की थी, वहां हर देश में उनकी सबसे बड़ी ताकत देशप्रेम और सत्ता प्रमुख के प्रति आस्था है। उनकी समृद्धि में देश की हर संपत्ति से बड़ी उनकी राष्ट्रीय ईमानदारी है,वहां राजनीति भी अनुशासित है और सत्ता भी।