सृजन अभी-अभी : नहीं, अब और नहीं

⚫ डॉ. नीलम कौर
नहीं अब और नहीं
बलि धर्म की
चढ़ने देंगे,
अहिंसा के पुजारी
अब हाथों में
हथियार लेंगे,
फूलों की घाटी में
शोणित की
नदियां बहाने वालों को
उसी नदी में
डूबोकर मारेंगे।
अब तक बहुत
सहा,
अब न और सहेंगे
परोपकार का छोड़कर
दामन
हाथों में हथियार
अब लेंगे,
किये बहुत उपकार
उन्नति और विकास के,
हुक्का-पानी बंद कर
सारी रिश्ते तोड़ने
होंगे।
मुखौटा हमें भी
शालीनता का उतारना
होगा,
जैसे को तैसा बनकर
दिखाना होगा,
इतिहास फिर नई
कलम से लिखकर
आने वाली संतति के
लिए
रास्ता खुशहाली का
बनाना होगा।
⚫ डॉ. नीलम कौर