विचार सरोकार : प्रदेश में विक्रम और बेताल की लटकन राजनीति
"चुनाव के पहले और चुनाव के बाद!" राजनीति में बड़े बड़े "लॉलीपॉप "पद होते हैं जो उन लोगों के लिए होते हैं जो मुंगेरी लाल के सपने ज्यादा देखते हैं।

⚫ डॉ. प्रदीप सिंह राव
राजनीति में यदि धैर्य नहीं है तो आप का सूरज कभी भी डूब सकता है। सहनशीलता और चापलूसी में जो माहिर होता है, उसी की तूती बोल सकती है। वैसे भी जब कोई पार्टी फर्श से अर्श पर पहुंच जाती है तो उसे किसी भी नेता की गरज कम ही हो जाती है। कोई कोई पार्टी धूल खाती संदूक बन जाती है, जिसमे धोती, कुर्ते, टोपियां वर्षों तक पड़ी रह जाती हैं।
कई नेता और चमचे भी और ऑफ डेट हो जाते हैं। कई कब्र में पैर डाल कर भी अवसर की ऑक्सीजन लिए प्रतीक्षा में बढ़ाते रहते हैं, लेकिन राजनीति के मदारी चने के झाड़ पर चढ़ाने में माहिर होते हैं। वे उल्लू बनाने में अग्रणी होते हैं। उनके पास "होल्ड" का ऐसा जादुई डंडा होता है जो उत्साही लाल उम्मीदवारों को लटकाए रहता है। इसलिए धुलाई पाउडर की तरह तस्वीर कुछ ऐसी ही होती है। "चुनाव के पहले और चुनाव के बाद!" राजनीति में बड़े बड़े "लॉलीपॉप "पद होते हैं जो उन लोगों के लिए होते हैं जो मुंगेरी लाल के सपने ज्यादा देखते हैं।
राजनीति के पहाड़ पर तो शिखर पिरामिड पर संख्या कम ही होती है। नीचे बॉटम में हजारों लोगों की हसरतें दम तोड़ती रहती है। अब हमारे ही प्रदेश को ले लीजिए। चुनाव से पहले कितने अरमान लिए लोग झंडे लहरा रहे थे। सत्ता की महिमा कुछ ऐसी होती है कि मंडित होते होते ऐसे पहाड़ पर चढ़ जाती है की नीचे कौन कौन भक्त खड़े हैं। दिखाए ही नहीं , देते जो समर्पित हो कर जी जान से जुड़े रहे वो डेढ़ साल से प्रतीक्षा कर रहे। कहीं नंबर ही नहीं लग रहा, कितने ही निगम मंडल अध्यक्ष पद लटक रहे हैं। हर कोई उम्मीद लगाए बैठा है कि ये कुर्सी तो मेरी ही है। आज करेंगे कल करेंगे में "न माया मिली न राम !"
कार्यवाहक की रेवड़ी मिल जाए, वहीं बहुत एक पद के सैकड़ों उम्मीदवार हर भ्रष्ट सोच रहा,,की मेरा नबर आने वाला है। एक अनार और सौ बीमार पार्टी अध्यक्ष की ताज पोशी होते ही हलचल बढ़ गई है, जिसमें विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री, मंत्री बनने से वंचित रह गए धुरंधर भी हैं जो भोपाल से दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं। इनमें दूसरी पार्टी से सत्ता पार्टी में आए नेता भी हैं जो चुनौती बने बैठे हैं। यह मन कर चलिए कि दंगल का अखाड़ा सज चुका है अब वजन के अनुसार पहलवान उतरेंगे। दांवपेंच सीखे जा रहे हैं। किसकी किस्मत चमकेगी यह" होल्ड" पर है। कौन प्लेइंग कौन बोल्ड पर है?
नजर लगाए रखिए नेता रूठेंगे मुंह चढ़ाएंगे बाहें भी चढ़ाएंगे जो अगले चुनाव की दिशा तय करेंगे ! लटकने की प्रक्रिया "विक्रम और वेताल" की तरह जारी रहेगी !उम्मीद के वेताल रोज रोज पेड़ पर लटक जाते हैं और सत्ता के प्रति निष्ठा के विक्रम बार बार झंडे उठाए जयकारे में काम आते हैं। अंततः कब उम्मीदें को कोई किनारा मिलेगा। सत्ता भी छकाने में पीछे नहीं रहती।
रहस्यमय कूटनीतिक खेल से जो मुंगेरी लाल बनते थे, उन्हें जहां पर बैठा दिया जाता है और पीछे की पंक्ति में खड़ा व्यक्ति अचानक सत्ता पर बैठा दिया जाता है, देखा था न पिछला विधानसभा चुनाव,,कौन बनेगा मुख्यमंत्री! अब तो ख्याति नाम ज्योतिष भी नहीं बता सकते कि कौन बनेगा निगम,मंडल अध्यक्ष, किसे मिलेगी जनभागीदारी समिति की सत्ता कौन होगा नंबर वन, टू,थी अभी तो हर शाख पर उम्मीदों के (...) बैठे हैं!