शख्सियत : मेरे संपादन में प्रकाशित ’अनुकृति’ के जरिए नए रचनाकारों को मिली पहचान
दर्शन शास्त्र, इतिहास और हिंदी में एमए कर चुकी डाॅ. जयश्री ने हिंदी स्नातकोत्तर कक्षा में राजस्थान विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। आपने ’दुष्यंत का काव्यः स्वरूप शिल्प और संवेदना’ विषय लेकर पीएचडी किया है। आपके दो कहानी संकलन छप चुके हैं, इनमें ’शिवकोरी,’ और ’शहीद की चिट्ठी’ शामिल हैं। आपके कविता संकलन ’चांद गोधूलि का’ को पाठकों ने बहुत सराहा है।

⚫ डाॅ. जयश्री शर्मा का कहना-
⚫ नरेंद्र गौड़
’’देश में लघु पत्रिका आंदोलन 1950 और 1960 के दशक में भारतीय भाषाओं में शुरू हुआ। यह एक साहित्यिक आंदोलन था, जिसमें मुख्य रूप से हिंदी साहित्य के नए लेखकों और साहित्यकारों को मंच प्रदान किया गया। इसी तारतम्य में वर्ष 2000 से मेरे संपादन में लघु पत्रिका ’अनुकृति’ का प्रकाशन जयपुर (राजस्थान) से निरंतर किया जा रहा है। यह अव्यावसायिक त्रैमासिक प्रकाशन है। इसमें हमने अनेक नए और उभरते रचनाकारों की रचनाएं प्रकाशित की हैं। उल्लेखनीय है कि उनमें से कुछ रचनाकारों का आज हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है।’’
डॉ. जयश्री शर्मा
यह बात ’अनुकृति’ लघुपत्रिका की संपादक डाॅ. जयश्री शर्मा ने कही। इनका कहना था कि बड़े घरानों की व्यावसायिक पत्रिकाओं में नये और उभरते लेखकों को बहुत मुश्किल से स्थान मिलता है। उनकी रचनाओं को आमतौर पर रद्दी की टोकरी के हवाले कर दिया जाता है। अव्वल तो महिनों तक रचना के प्रकाशन को लेकर कोई जवाब ही नहीं दिया जाता। वापसी का लिफाफा होने के बावजद रचना वापस नहीं की जाती। ऐसी स्थिति देखते हुए हमने मित्र मंडल के सहयोग से जयपुर से लघुपत्रिका ’अनुकृति’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। साल भर के चार अंक छपते हैं और वार्षिक सहयोग राशि मात्र दो सौ रूपए है।
रचनाकारों पर लादी नहीं जाती शर्तें
एक सवाल के जवाब में डाॅ. शर्मा ने बताया कि ’अनुकृति‘ का प्रकाशन अनेक दिक्कतों के बावजूद वर्ष 2000 से नियमित जारी है। लघुपत्रिकाओं में लेखकों की रचनाएं उनकी शर्तो पर छपती है, न कि संपादक या प्रकाशक की शर्ते लादी जाती हैं। यह सभी जानते हैं कि लघुपत्रिकाओं को विज्ञापन मिलना बहुत कठिन है, ऐसे में पाठकों के सहयोग के दम पर ही इनका प्रकाशन होता है। हमारे साथ बहुत से सहयोगी है, लेकिन सभी अवैतनिक कार्य करते हैं। प्रकाशन के काम में मेरे पति श्री बाबू खाण्डा का भरपूर सहयोग रहता है। संपादन के साथ ही प्रुफ रिडिंग, डिजाइन तैयार करना और रचनाकारों के पते पर पत्रिका पोस्ट करने के सभी काम मैं अकेली करती हूं।
आत्मसंतोष हमारी पूंजी
डाॅ. जयश्री ने बताया कि लेखकों को मानदेय देने की स्थिति हमारी ही नहीं, अनेक लघुपत्रिकाओं की भी है। यह बात रचनाकारों को पता है, इसलिए वह पारिश्रमिक मांगते भी नहीं। सभी जानते हैं कि इन दिनों कागज और छपाई के दाम आसमान छू रहे हैं, ऊपर से सरकार ने जीएसटी भी लगा रखा है। यही कारण है कि लघुपत्रिकाओं का प्रकाशन अत्यंत जीवट का काम हो चला है। ऐसे में आत्म संतोष मिलना ही हमारी पूंजी है। अभी तक अनुकृति प्रकाशन व्दारा 18 महत्वपूर्ण पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है, इनमें नवोदित के साथ ही नामीगिरामी रचनाकार भी शामिल हैं।
छप चुके अनेक संकलन
दर्शन शास्त्र, इतिहास और हिंदी में एमए कर चुकी डाॅ. जयश्री ने हिंदी स्नातकोत्तर कक्षा में राजस्थान विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है। आपने ’दुष्यंत का काव्यः स्वरूप शिल्प और संवेदना’ विषय लेकर पीएचडी किया है। आपके दो कहानी संकलन छप चुके हैं, इनमें ’शिवकोरी,’ और ’शहीद की चिट्ठी’ शामिल हैं। आपके कविता संकलन ’चांद गोधूलि का’ को पाठकों ने बहुत सराहा है। ’दुष्यंत कुमारः एक अध्ययन’ आपकी आलोचना की पुस्तक है। गजलों का संकलन ’गजल पंचदशी’ छपकर चर्चित हुआ है। बोधि प्रकाशन जयपुर से आपकी एक और पुस्तक ’संपादक कहिन’ पाठकों के बीच चर्चित है।
महत्वपूर्ण समाचार पत्रों का संपादन
आपने अनेक महत्वपूर्ण अखबारों का संपादन किया है। इनमें बीकानेर से वर्ष 1976 से 1985 तक आंचलिक पत्रिका ’छकियारी’, वर्ष 1987 से 1990 तक ’पिछड़ा पक्ष’ पाक्षिक अखबार, वर्ष 2000 से जयपुर से निरंतर त्रैमासिक ’अनुकृति’ का प्रकाशन एवं संपादन। यह भी उल्लेखनीय है कि आप ’जगद्गुरू रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय’ मदाऊ में हिंदी सहआचार्य रह चुकी हैं। आप ’राजस्थान लेखिका साहित्य संस्थान’ जयपुर की अध्यक्ष हैं। वर्ष 2021- 2022 तक आपने राजस्थान विश्वविद्यालय के महारानी काॅलेज में अध्यापन भी किया है। आप 31 मार्च 2018 में राजकीय बी.एन.डी.पीजी काॅलेज चिमनपुरा से सेवानिवृत्त हुई हैं।
अनेक सम्मान एवं अलंकरण
डाॅ. जयश्री को उनके श्रेष्ठ रचनाकर्म की वजह से अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। राजस्थान पाठक मंच व्दारा आपको वर्ष 2002 में सम्मानित किया गया। वर्ष 2008 में खानपुर, अलवर में ’विशिष्ट सम्मान’, वर्ष 2014 में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन इलाहबाद व्दारा ’राष्ट्र भाषा गौरव’ सम्मान, वर्ष 2014 में श्रीडूंगरगढ़ हिंदी प्रचार प्रसार समिति व्दारा ’साहित्य श्री’ सम्मान, वर्ष 2015 में नाथव्दारा साहित्य मंडल व्दारा ’संपादक शिरोमणि’ सम्मान, वर्ष 2017 में राजस्थान लेखिका संघ कोटा व्दारा ’महाश्वेता देवी सम्मान’, वर्ष 2017 में अलवर से ’श्री तेजेंद्र कुमार अग्रवाल’ स्मृति सम्मान, वर्ष 2021 में ’राष्ट्रीय सलिला साहित्य रत्न सम्मान’, वर्ष 2021 में संपर्क संस्थान व्दारा ’गुरूवंदन सम्मान’, वर्ष 2021 में ’मां भारती कविता महायज्ञ विश्व कीर्तिमान’ में ’काव्यसारथी’ सम्मान’ विशेष उल्लेखनीय हैं।
डाॅ. जयश्री की चुनिंदा कविताएं
खत का मजमून
खत का मजमून मन से ताड़िये
बेरहमी से लिफाफा न फाड़िये।
सच को छुपाना भी इक सच्चाई है
चेहरे से नकाब मत उघाड़िये।
सोये होंगे जिन्न रात को यहां
सुबह हो गई है बिस्तर झाड़िये।
मकान है तो छिपकलियां भी होंगी
रहने दो दीवारें, मत उखाड़िये।
दंड देना हो तो चुप्पी से दीजिये
बेवजह इस तरह न दहाड़िये।
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बैठकर सोचना
बैठ कर सोचना भी क्या सोचना है
कुछ भी न सोचो यही सोचना है।
सहायता कोई करेगा नही,
देंगे सलाह सभी
थोक के सलाहकारों का क्या खोजना है।
कौन सलामत लौटता है बाजार से
आज सभी का यही तो रोजाना है।
फुटपाथ पर भी बिखरे पड़े हैं सपने
एक भिखारी के पास भी कोई योजना है।
बड़े जतन से लगा रही है लड़की बिंदी
न जाने किस मुकाम पर पहुंचना है।
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अपने हिस्से का आसमान
अरमान कब था कि बुलंदी तक उड़ान मिले
हां मगर चाह थी, अपने हिस्से का आसमान मिले।
चाह थी अटारी पे, तुम से मुलाकात होगी
नीच ही रोक लिया हमे, ऐसे पायदान मिले।
पहचानते नहीं जिसे, घर और घर वाले
गुमशुदा गरीब को, ऐसे वरदान मिले।
जो भी सोचा लिखो, विषय सिर्फ दिल्ली हो
ढाणियों के वास्ते कब, हमें व्याख्यान मिले।
कब तक लड़ेगा अन्याय से निहत्था कोई
हमें बम के जमाने में, टूटे तीर कमान मिले।
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विडम्बना
मेरे भीतर सपनों की, कितनी गुहायें हैं
खाली- खाली सांसों में, कितनी इच्छाएं हैं।
सागर को भरना है, झीने-झीन आंचल में
आंचल को आखिर ऐसी, कब मिल दुआयें हैं
उड़ने को तो ऊपर अम्बर अंतहीन है
अम्बर से पंख बड़े हो गए, ऐसी मिली सजाएं हैं
जितने चले उतनी मंजिल दूर हुई
हम जैसे राही को मिले धूप के साये हैं।
अग्नि में तो जले नहीं, जब सूरज से बात करी
लेकिन नदिया के ठंडे पानी में हमने हाथ जलाये हैं।