शख्सियत : किसी भी कीमत पर समाप्त हो दुनिया से युद्ध
युद्ध राजनीतिक कारणों से लड़ा जाता है जिसमें आम जनता को पिसना पड़ता है। आज दुनिया में शीतयुद्ध के दौर से भी भयानक बड़े युद्ध का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि जिन कारणों ने दुनिया को युद्ध के कगार पर ला खड़ा किया है, उन्हीं ने पहले से अधिक शांति के आंदोलन के लिए स्थितियां भी बनाई हैं।
⚫ साहित्यकार ऊष्मा ’सजल’ का कहना
⚫ नरेंद्र गौड़
’इजराइल पर हमास के हमले के बाद फिलिस्तीन और इजराइल के बीच युध्द जारी है, दोनों तरफ से राकेट दागे जा रहे हैं। जिसके चलते लाखों लोग मारे जा चुके हैं। ताजा हालात यह हैं कि फिलिस्तीन में हजारों बच्चे भुखमरी का सामना कर रहे हैं, यदि तत्काल खाद्य सामग्री नहीं पहुंची वह बेमौत मारे जाएंगे। इसी प्रकार रूस और युक्रेन के बीच भी लगातार लड़ाई जारी है। निश्चय ही दुनिया से युध्द किसी भी कीमत पर समाप्त होना चाहिए।’

समकालीन कविता की सशक्त हस्ताक्षर ऊष्मा ’सजल’
यह बात समकालीन कविता की सशक्त हस्ताक्षर ऊष्मा ’सजल’ ने कही। इनका मानना है कि युध्द किसी भी समस्या का समाधान नहीं हैं। युध्द में लाखों लोग मारे जाते हैं और हजारों भूख के शिकार होते हैं, बाजारों में आम उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें आसमान छूने लगती हैं। युध्द राजनीतिक कारणों से लड़ा जाता है जिसमें आम जनता को पिसना पड़ता है। आज दुनिया में शीतयुध्द के दौर से भी भयानक बड़े युध्द का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि जिन कारणों ने दुनिया को युध्द के कगार पर ला खड़ा किया है, उन्हीं ने पहले से अधिक शांति के आंदोलन के लिए स्थितियां भी बनाई हैं।
रूस युक्रेन, फिलिस्तीन इजराइल युद्ध
ऊष्मा जी का कहना है कि पिछले ढ़ाई साल से रूस युक्रेन युध्द जारी है। धीरे-धीरे यह स्पष्ट हो रहा है कि यह रूस के खिलाफ नाटो और अमेरिका का युध्द है। युध्द के दौरान अमेरिका ने युक्रेन का करीब 70 अरब डालर की सहायता दी है। वहीं सामूहिक पश्चिम ने 140 अरब डालर दिए हैं और तो और अमेरिकी कांग्रेस ने 113 अरब डालर की सहायता को मंजूरी दी है। अब कहा जा रहा है कि रूस यह जंग जीत जाएगा, लेकिन इसके बावजूद मिलेगा क्या? लाखों लोगों की मौत, भुखमरी, लाचारी और बेरोजगारी! वही इजराइल और फिलिस्तीन के बीच भी भयंकर युध्द जारी है।
सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण
इनका वास्तविक नाम ऊष्मा वर्मा है, लेकिन ऊष्मा ’सजल’ के नाम से कविताएं लिखती हैं। आपका जन्म फैजाबाद( उत्तरप्रदेश) में श्री अर्जुन प्रसाद जी के यहां हुआ। आपने हाईस्कूल से लेकर एमए, एलएलबी तक सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की हैं। इन दिनों आप शासकीय विद्यालय में शिक्षिका हैं। इसके अलावा आप आकाशवाणी की केज्युअल आर्टिस्ट भी हैं। आए दिन आपका काव्यपाठ, साक्षात्कार सहित अन्य कार्यक्रम दूरदर्शन के डीडी भारती स्टेशन से प्रसारित होते रहते हैं। इनकी प्रमुख कृतियों में ’मैं पलाश गुलमोहर सी’, ’समय की शिला पर’, ’एक कलम बेटियों के नाम’ एलबम ’समय की शिला पर,’ एलबम ’मर न जाऊं’ शामिल हैं।
अनेक पुरस्कार मिल चुके
ऊष्मा जी को अनेक पुरस्कार तथा अलंकरण से नवाजा जा चुका है। इनमें प्रमुख हैं ’अवध गौरव सम्मान’, ’बेस्ट टीचर्स अवार्ड’, ’शिक्षक श्री सम्मान’, ’शक्ति सम्मान’, ’मातृश्री सम्मान’ तथा ’नारी शक्ति सम्मान’ शामिल हैं। ऊष्मा जी की कविताएं सामाजिक यथार्थ पर केंद्रित होती हैं। इनकी कविताएं इस तरफ भी इशारा करती हैं कि समय की क्रूरता हमें अकेला कर देती है। भीड़ भरे समाज की भागमभाग और आपदाओं के झंझावात हमें निरीह बना देतेे हैं। वहीं कविता हमारी दुनिया को बड़ा बनाती है और हमारा अकेलापन तोड़ती है। हम दूसरों के दुख और वेदना को साझा करते हैं। कविता उत्पीड़ितों में एका करने में मदद करती है। यह भावनात्मक एका है। यह मनुष्यता के धागे का नाजुक-सा बंधन है। इनकी कविताओं के अर्थ बहुआयामी होते हैं। भाषा सरल सहज और स्पष्ट है। निश्चय ही इनकी कविताएं सम्भावनाशील और ऊर्जावान कवयित्री की कविताएं हैं।
ऊष्मा ’सजल’ की कविताएं
करूं मैं कैसे जय जयकार
सत्ता के गलियारे में जब
जनता हो लाचार
करूं मैं कैसे जय जयकार
करूं मैं किसकी जय जयकार
मानवता निरूपाय खड़ी हो
घाव हो गहरा पीर बड़ी हो
धर्म युद्ध में सौंपी जाए
जंग लगी तलवार
करूं मैं कैसे जय जयकार
जाति धर्म अभिशाप हुआ हो
सच कहना भी पाप हुआ हो
तन मन दोनों बंदी होकर
सहते अत्याचार
करूं मैं किसकी जय जयकार
डिग्री धारी लाठी खाए
पिता कर्ज में डूबा जाए
सूली पर अरमान झूलते
लेकर स्वप्न हजार
करूं मैं किसकी जय जयकार
रोटी बेटी दोनों जलती
मां हाथों को रहती मलती
कोर्ट कचहरी के चक्कर में
जाय बुढ़ापा हार
करूं में कैसे जय जयकार
न्याय जहां पर दास हुआ हो
कुछ लोगों का खास हुआ हो
लोकतंत्र पर लटक रही हो
दो धारी तलवार
करूं मैं कैसे जय जयकार
जहां आत्मा बिलख रही हो
अपलक दुर्दिन निरख रही हो
जहां गुलामी के फिर से
अब दिखते हों आसार
करूं मैं कैसे जय जयकार
जहां किसान रहे धरने पर
जहां जवान बिके मरने पर
अपनी शर्तों पर बनती हो
अपनों की सरकार
करूं मैं कैसे जय जयकार
सच कोने में अश्रु बहाए
झूठा ऐंठे रोब दिखाए
सत्य खड़ा जब न्याय मांगने
निकले सब मक्कार
करूं मैं कैसे जय जयकार।
जरा याद रखना
कलम ठोकरों से गिराई गई थी
संभलने लगी है जरा याद रखना
तुम्हारे दिए जख्म सूखे नहीं हैं
मगर हंस रहे हैं जरा याद रखना
ये कपड़े,ये कुर्सी, ये गाड़ी ये बंगला
जवानों के ख्वाबों ख्यालों पे हमला
ये लाचार बेटी ये बदहाल माएं
ये रोती झुंकी रोटियों पे निगाहें
तुम्हारे इशारे पे तपता है सूरज
कहीं ढल न जाए जरा याद रखना
वो बस्ती का जलना, नगर का उजड़ना
तेरी जूतियों के रहम पर संभलना
जहां सिसकियों से सदा नींद टूटे
मनाने की खातिर जहां दंभ रूठे
वो बैखौफ मुर्दे जिन्हें फेंक आए
वो हिलने लगे हैं जरा याद रखना
कई बार सोए कई बार जागे
ये माना की सपने बड़े हैं अभागे
मगर आंख अब सब समझने लगी है
मेरी बेबसी भोर तकने लगी है
वो तलवार जो खूंटियों पर टंगी थी
चमकने लगी है जरा याद रखना
ये माना की सदियों से हम गम जदा थे
तुम्हीं तुम थे व्यापक, भला हम कहां थे
कभी सोना खाना पहनना न जानें
तुम्हारी ही शर्तों पर गुजरे जमाने
मगर पीढ़ियां बो रहे थे जमीं में
वो उगने लगी है जरा याद रखना
खौफ का अखबार है वो
सभी आहों का जिम्मेदार है वो
भला कैसा सिपहसालार है वो
जो भी चाहे खरीद ले जिसको
भटकती लाशों का बाजार है वो
सर पटकते लहूलुहान है सिर
अंधी बहरी खड़ी दीवार है वो
विरासत कर रहा नीलाम अपनी
हमारे मुल्क का गद्दार है वो
बस्तियां नगर शिवाले मस्जिद
उजाड़ने का हर औजार है वो
दहाश्तें बांटता है हर घर में
और बनता बड़ा लाचार है वो
क्या पता कल की सुर्खियां क्या हों
हर सुबह खौफ का अखबार है वो।
ये आंसू दर बदर बिकते नहीं हैं
गुल-ए-आबाद अब मिलते नहीं हैं
के चेहरे धूप में खिलते नहीं हैं
घट गई खुद-ब-खुद रफ्तार अपनी
दिए अब राह में जलते नहीं हैं।
गैरत-ए- दिल ना खरीदा बेचा
ये धंधे उम्र भर फलते नहीं हैं
गुलों पर मिल्कियत होगी तुम्हारी
हमारे हौसले फलते नहीं हैं
दवा-ए-दिल का मुकर्रर है समय
ये दिल के जख्म पर ढलते नहीं हैं
इरादा कर लिया मिटने का जब से
तुम्हारे खौफ से डरते नहीं हैं
मेरी औकात के बाहर है सौदा
खुशी हम कर्ज में लेते नहीं हैं
पोटली बांध ली आंखों की हमने
ये आंसू दर-बदर बिकते नहीं हैं।

Hemant Bhatt