विचार सरोकार : संचार क्रांति और बाल मन: संभावनाएँ, संकट और संतुलन की आवश्यकता
बच्चों को संचार क्रांति के इस संसार में प्रवेश तो दिलाना चाहिए, लेकिन साथ ही उन्हें चेतना, विवेक और मूल्यों की छड़ी भी थमानी होगी। यदि हम यह संतुलन साध सके, तो संचार क्रांति हमारे बच्चों के लिए एक उड़ान का आकाश बन सकती है; अन्यथा यह उन्हें आभासी जाल में उलझा देने वाला तूफ़ान भी बन सकती है।
⚫ शकीला बानो
मनुष्य का संचार उसकी सबसे मौलिक और प्रभावी शक्ति रही है। किन्तु जब यह संचार ‘क्रांति’ का रूप लेता है - जैसे मोबाइल, इंटरनेट, सोशल मीडिया, स्मार्ट डिवाइसेज़ और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिये -तो यह केवल संवाद का माध्यम नहीं रहता, बल्कि एक शक्तिशाली सामाजिक-मानसिक बल बन जाता है। इस क्रांति का सबसे संवेदनशील प्रभाव पड़ा है बच्चों पर, जो मानसिक और नैतिक विकास की प्रक्रिया में होते हैं।

यह लेख इसी दृष्टिकोण से संचार क्रांति का बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव का विवेचन करता है- एक संतुलन की तलाश में, जहाँ संभावनाएँ भी हैं और संकट भी।
⚫ संचार क्रांति: ज्ञान की खुलती खिड़कियाँ
आज का बच्चा पारंपरिक पाठ्यपुस्तकों तक सीमित नहीं है। उसे एक क्लिक पर विज्ञान के नवीनतम प्रयोग, भौगोलिक खोज, भाषाई विविधता, और इतिहास की अनछुई परतें उपलब्ध हैं। ऑनलाइन कोर्स, वीडियो ट्यूटोरियल, वर्चुअल क्लासरूम, इंटरऐक्टिव गेम्स आदि के माध्यम से उसका बौद्धिक क्षितिज अभूतपूर्व रूप से विस्तृत हो रहा है। यह एक सकारात्मक परिवर्तन है — बच्चों में सवाल पूछने की प्रवृत्ति, तथ्य जाँचने की आदत, और रचनात्मकता के नए रूप उभर रहे हैं।
⚫ संवेदनशीलता से संवेदनहीनता तक की यात्रा
जहाँ संचार क्रांति ने ज्ञान के द्वार खोले, वहीं उसने बाल मन की कोमलता को भी जटिल बना दिया है। जब एक 10 वर्षीय बच्चा युद्ध, हिंसा, यौन आपराधिक समाचार या आत्महत्याओं को अपनी स्क्रीन पर देखता है, तो उसका अवचेतन धीरे-धीरे संवेदनशीलता खोने लगता है। किसी और के दर्द पर हँसने वाले मीम्स, वर्चुअल ट्रोलिंग और हिंसक वीडियो गेम्स। उसके भीतर एक ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं, जो सहृदयता से दूर और आत्मकेंद्रित होता जा रहा है।
⚫ संबंधों की जगह स्क्रीन, संवाद की जगह स्वाइप
बच्चे अब पहले की तरह पारिवारिक संवाद, खेलकूद और सामाजिक संपर्क में भाग नहीं लेते। उन्हें मोबाइल और टैबलेट ज्यादा प्रिय हैं,दादी की कहानियाँ नहीं, यूट्यूब चैनल्स ज्यादा आकर्षक हैं। इससे उनकी सामाजिक समझ, सहानुभूति की भावना, और भावनात्मक अनुकूलन क्षमता घट रही है। यह स्थिति भविष्य की एक असंवेदनशील, आत्मकेन्द्रित और तकनीक-निर्भर पीढ़ी की ओर इशारा करती है।
⚫ भाषा और संस्कृति का द्वंद्व
संचार माध्यमों में प्रयुक्त भाषा, शैली और संदर्भ बच्चों की भाषाई शुद्धता और संस्कृति से जुड़ाव को प्रभावित कर रहे हैं। ‘हिंग्लिश’, ‘स्लैंग्स’, संक्षिप्त संवाद (जैसे "LOL", "OMG", "BTW") अब सामान्य हो चुके हैं। इसने भाषा की गंभीरता और साहित्यिकता को पीछे ढकेल दिया है। साथ ही, स्थानीय भाषाओं और लोक संस्कृति से बच्चों की दूरी भी बढ़ रही है, जिससे उनकी सांस्कृतिक पहचान कमजोर हो सकती है।
⚫ मानसिक स्वास्थ्य: एक अदृश्य तूफ़ान
मनुष्य को संवाद चाहिए, लेकिन जब संवाद वास्तविक न होकर वर्चुअल हो जाता है, तो अकेलापन गहराने लगता है। सोशल मीडिया पर 'स्वीकृति' की लालसा, सार्वजनिक तुलना और डिजिटल दिखावा बच्चों में हीन भावना, आत्म-अस्वीकृति और तनाव को जन्म दे रहे हैं।13-18 वर्ष की आयु के बच्चों में डिजिटल डिप्रेशन, सोशल एंज़ायटी, और इंटरनेट एडिक्शन तेजी से बढ़ रहे हैं। यह एक मूक महामारी बन चुकी है।
⚫ नैतिकता और निर्णय क्षमता पर प्रभाव
जब बच्चों का नैतिक विवेक मोबाइल ऐप्स और यूट्यूब एल्गोरिद्म से आकार ले रहा हो, तो प्रश्न उठता है। क्या वे सही और गलत में अंतर करना सीख पा रहे हैं? विज्ञापन, रील्स और इन्फ्लुएंसर्स की दुनिया उन्हें उपभोक्तावाद, तात्कालिकता और छवि-निर्माण की ओर ले जा रही है, जहाँ धैर्य, आत्मावलोकन, और संतुलन की जगह तात्कालिक संतुष्टि और आभासी प्रसिद्धि ने ले ली है।
⚫ अभिभावकों और शिक्षकों की भूमिका
बच्चों के जीवन में संचार क्रांति को सकारात्मक बनाना केवल तकनीक की नहीं, पालन-पोषण की भी चुनौती है। अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों के साथ संवाद करें। केवल डाँटे नहीं, उनकी डिजिटल दुनिया को समझें, शिक्षक केवल पाठ्यक्रम के प्रदाता नहीं, मूल्य आधारित मार्गदर्शक बनें। उन्हें यह सिखाना होगा कि "तकनीक एक औजार है, उद्देश्य नहीं। संचार क्रांति ने बच्चों के सामने एक द्वार नहीं, पूरा संसार खोल दिया है। यह संसार ज्ञान, अनुभव और रचनात्मकता से भरा है, लेकिन इसमें भ्रम, संकट और व्यसन की घाटियाँ भी हैं।
अन्यथा हो सकता है ऐसा भी
बच्चों को इस संसार में प्रवेश तो दिलाना चाहिए, लेकिन साथ ही उन्हें चेतना, विवेक और मूल्यों की छड़ी भी थमानी होगी।
यदि हम यह संतुलन साध सके, तो संचार क्रांति हमारे बच्चों के लिए एक उड़ान का आकाश बन सकती है; अन्यथा यह उन्हें आभासी जाल में उलझा देने वाला तूफ़ान भी बन सकती है।

⚫ शकीला बानो
Hemant Bhatt