साहित्य सरोकार : कविता और स्त्री के अंतर्मन की परतें खोलना जितना सरल उतना ही जटिल

साहित्य सरोकार : कविता और स्त्री के अंतर्मन की परतें खोलना जितना सरल उतना ही जटिल

जनवादी लेखक संघ का 'कविता और स्त्री' आयोजन हुआ

हरमुद्दा
रतलाम, 27 अप्रैल। कविता इशारों में बातें करने वाली शर्मीली विधा है और उसके अंतर्मन की परतें खोलने उतना ही सुखद, सरल किंतु जटिल है जितना किसी स्त्री के अंतर्मन की परतें खोलना । स्त्री और कविता का संबंध स्वाभाविक है । हर स्त्री एक कविता है और हर कविता में एक स्त्री । कविता और स्त्री के इन्हीं अंतर्संबंधों का खुलासा जनवादी लेखक संघ रतलाम द्वारा आयोजित  'कविता और स्त्री ' कार्यक्रम में हुआ जहां शहर की तेरह कवयित्रियों ने वर्तमान संदर्भों और विषयों को मज़बूती से उठाते हुए मनुष्यता के सामने खड़े प्रश्नों को अपनी रचनाओं में पेश किया।


भगतसिंह वाचनालय पर महिलाओं को समर्पित इस आयोजन की शुरुआत में  जनवादी लेखक संघ की ओर से रचनाकारों का स्वागत करते हुए कहा गया कि यह आयोजन  शहर की समृद्ध महिला रचनाकारों की परम्परा में नया अध्याय जोड़ रहा है। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि हिन्दी साहित्य की विदूषी डॉ. पूर्णिमा शर्मा थीं वहीं अध्यक्षता हिन्दी की प्राध्यापिका डॉ. स्वर्णलता ठन्ना ने की।

इन्होंने किया रचना पाठ

रचना पाठ की शुरुआत करते हुए आशारानी उपाध्याय ने अपनी बेहतरीन ग़ज़लें पढ़ी। उन्होंने कहा - ' इस सितम को सह लेंगे संसार में, साथ छोड़ा है जब तूने मझधार में।
वरिष्ठ लेखिका पुष्पलता शर्मा ने अपनी रचनाओं का पाठ करते हुए ' विरहिणी की व्यथा ' कविता सुनाई। उन्होंने कहा  '
बिजली का बिल देखकर हाय कबीरा रोए।  '
कवयित्री इंदु सिन्हा ने सिन्दूर से नहाई औरतें , ठंडा ख़ून शीर्षकों से कविता पढ़कर स्त्री विमर्श की बात को रेखांकित किया। डॉ. स्वर्णलता ठन्ना ने सूफियाना प्रेम और अन्य कविताएं सुनाईं। पूजा चौपड़ा ने 'मां -बेटी' शीर्षक से कविता पढ़ते हुए कहा, ' मां तूने खोया ही खोया, इस जीवन में क्या पाया है।' 
डॉ. पूर्णिमा शर्मा ने अपनी रचना में कहा, 'हम सुसंस्कृत संस्कृति के शत्रु बने बैठे हैं।डॉ.गायत्री तिवारी ने अभिलाषा , मां तेरी याद आती है कविताएं पढ़ीं।
डॉ. गीता दुबे ने स्त्री नदी ही तो हैं , मगर अभी भी, क्या तुम स्त्री को परिभाषित कर रहे हो आदि कविताओं को पढ़कर गोष्ठी को सार्थक किया। प्रतिभा पांडे अपने नवगीतों का पाठ करते हुए कहा 'मां का कब होगा इतवार ' और
'उखड़ी हुई है सांसें मैं हाफता शहर हूं।'
योगिता राजपुरोहित ने अपनी रचना में कहा, ' ईश्वर तूने स्त्री कैसे बनाई, सच बताना वो मिट्टी कहां से पाई। '
संचालन करते हुए आशा श्रीवास्तव ने महिलाओं पर केंद्रित प्रमुख पंक्तियां प्रस्तुत की। अंत में आभार जनवादी लेखक संघ अध्यक्ष रणजीत सिंह राठौर ने माना।

यह थे मौजूद

आयोजन में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो रतन चौहान, रंगकर्मी कैलाश व्यास, ओमप्रकाश मिश्र, दुष्यंत व्यास, यूसुफ़ जावेदी, प्रणयेश जैन, आशीष दशोत्तर, कीर्ति शर्मा, नरेंद्र सिंह पंवार, गीता राठौर, मांगीलाल नगावत, दिनेश उपाध्याय, लक्ष्मण पाठक, दिलीप जोशी, रामचंद्र फुहार, मुकेश सोनी, चरणसिंह जाधव, जितेंद्र सिंह पथिक, कला डामोर सहित सुधिजन मौजूद थे ।