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आखिर कब होगी महिलाएं अपने अधिकार के प्रति जागरूक… कब मिलेगी सजा निर्भया के गुनाहगारों को?

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🔲 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की प्रासंगिकता… जागरूक महिलाओं का चिंतन

🔲 हरमुद्दा

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का वास्तविक मकसद यह है कि महिलाओं को जीवन में बराबरी का दर्जा मिले। समाज की कुरीतियों से महिलाओं को बाहर निकालकर विकास के अवसर मिले। वैसे महिला के बिना एक दिन भी घर की कल्पना संभव नहीं है। महिलाओं के लिए 1 दिन नहीं, पूरा वर्ष उन्हीं का है। जरूरत है अपने अधिकार के प्रति उन्हें जागरूक रहने की। भारतीय नारी हर क्षेत्र में अग्रणी रही है। नारी सक्षम और सशक्त है। नारी का सदैव सम्मान होना चाहिए, परन्तु नारी जीवन की कुछ समस्याएं जस की तस दिखाई दे रही है। निर्भया के गुनाहगारों को आज तक सजा नहीं मिल रही है। इसका मतलब यह है कि वह आजाद है मगर बेड़ियों में जकड़ी हुई।

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महिलाओं की जागरूकता की बिना योजनाएं बेकार

‘‘आई एम जेनरेशन इक्वेलिटी – रिलाईजिंग वूमेन्स राईट’’ अर्थात् ‘‘मैं पीढ़ियों की समानता: महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही (रहा) हूं’’- यही है थीम वर्ष 2020 के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की। इस थीम में संकल्पना की गई है कि ‘‘पीढ़ी समानता अभियान हर लिंग, आयु, जातीयता, जाति, धर्म और देश के लोगों को एक साथ ला रहा है, ऐसे कार्यों को चलाने के लिए जो लिंग-समान दुनिया को हम सभी के लायक बनाएंगे।’’ एक साथ, हम लिंग आधारित हिंसा को समाप्त करने के लिए जुटना चाहते हैं।
हम सभी के लिए आर्थिक न्याय और अधिकारों का आह्वान कर रहे हैं, शारीरिक स्वायत्तता, यौन और प्रजनन, स्वास्थ्य और अधिकार और जलवायु न्याय के लिए नारीवादी कार्रवाई। यह सारे प्रयास लैंगिक समानता के लिए प्रौद्योगिकी और नवाचार चाहते और नारीवादी नेतृत्व के लिए समर्पित हों।
इस दृष्टि को वास्तविकता बनाने में छोटे कार्यों का बड़ा प्रभाव हो सकता है। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर संयुक्त राष्ट्रसंघ की ओर से आह्वान किया गया है कि ‘‘ हैशटैग जेनरेशनइक्वेलिटी ’’ से जुड़ें और आंदोलन का हिस्सा बनें। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस वह दिवस है, जब हम आकलन करते हैं कि विगत 364 दिनों में हमने महिलाओं को स्वावलंबी, सबल और जागरूक बनाने के लिए क्या किया? इस आकलन के आधार पर ही महिला सशक्तिकरण के अगले 365 दिनों की योजनाएं बनाते हैं, संकल्प लेते हैं। जब तक महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति पूर्ण जागरूकता नहीं आ जाएगी, तब तक अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रासंगिक रहेगा।

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🔲 डॉ.शरद सिंह, साहित्यकार, सागर (म.प्र.)

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महिलाओं को मिले बराबरी का दर्जा

संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। नारी सम्मान का स्मरण कराने का दिवस है अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस यानी 08 मार्च …. जी हां, विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में समस्त प्रकार की महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के रूप में मनाया जाता है। मां, बहन, बेटी, पत्नी… अनेक रूप हैं महिलाओं के। हर रूप में नारी स्तुत्य है।
महिला दिवस मनाने का उद्देश्य नारी को समाज की कुरीतियों से बाहर निकालकर विकास का अवसर प्रदान करना है। महिला दिवस मनाने का वास्तविक मकसद यह है कि महिलाओं को जीवन में बराबरी का दर्जा मिले। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस समाज में महिलाओं के योगदान का जश्न मनाता है, लिंग समानता के लिए लड़ाई के बारे में जागरूकता बढ़ाता है, और उन संगठनों के लिए समर्थन को प्रेरित करता है जो विश्व स्तर पर महिलाओं की मदद करते हैं।

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🔲 डॉ. वर्षा सिंह, साहित्यकार, सागर (म.प्र.)

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भारतीय सामाजिक व्यवस्था में नारी की भूमिका

भारतीय नारी की सामाजिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका है। नारी के चार रूप हैं। माँ, बहिन, बेटी और पत्नी नारी के इन चार स्वरूपों के बिना परिवार संस्था की कल्पना भी नहीं जा सकती है। दया, ममता, वात्सल्य नारी के स्वभाविक गुण हैं। भारतीय जीवन का केंद्र बिंदु नारी है। वर्तमान समय में नारी ने सामाजिक, राजैनतिक, आर्थिक सभी क्षेत्रों में अपना परचम फहराया है। भारतीय नारी हर क्षेत्र में अग्रणी रही है। नारी सक्षम और सशक्त है। नारी का सदैव सम्मान होना चाहिए, परन्तु नारी जीवन की कुछ समस्याएं जस की तस दिखाई दे रही है। नारी अस्मिता और बेटी सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह ? आज भी लगा हुआ है। निर्भया कांड के दोषियों को अब तक फाँसी की सजा नहीं दी गई। जघन्य अपराध करने वाले आज भी जिंदा है। गुनहगार को सजा मिलने में इतना विलंब क्यों?अब समय आ गया है नारी को अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं को और भी शक्तिशाली बनाना होगा और नारी के साथ बदसलूकी करने वाले को नारी स्वयं दंड तय करेगी। वो वक्त अब दूर नहीं है जब नारी के साथ अपराध करने वाला, अपराध करने से पहले हजार बार सोचेगा कि किए गए अपराध का अंजाम क्या होगा?
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🔲 जयंती सिंह लोधी, लेखिका, सागर, मध्यप्रदेश

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पहचान व जिम्मेदारियां का
बखूबी निर्वाह कर रही नारी शक्ति

भारत देश में सत्तर के दशक में सामाजिक , आर्थिक, पारिवारिक एवं राजनीतिक संघर्षों से जुड़ी महिलाओं को सभी स्तर पर घुटन की जिंदगी और दोयम दर्जे से मुक्ति दिलाने के लिए एक आंदोलन के रूप में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के आयोजन की शुरुआत की गई थी। जो कि आज की बदली हुई स्थितियों में सफल रूप से दिखाई देता है। प्रत्येक वर्ष ये दिवस अपनी थीम के साथ आयोजित किया जाता है इसी क्रम में सन् 2020 की थीम – I am generation equality realizing women’s right ( मैं महिलाओं के अधिकारों को महसूस कर रही हूँ) अपने आप में महिलाओं के प्रत्येक स्तर पर उनके अधिकारों के सुलभ होने की परिचायक है। वर्तमान में महिलाएं अपनी मानवीय पहचान को अपनी अन्य सभी जिम्मेदारियों के बखूबी निर्वाह करने के साथ ही संवारने में नारी शक्ति लगी हुई हैं।

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🔲 निरूपमा मिश्रा, शिक्षिका

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मातारानी के नो रूपों को स्वयं में निहित रखें महिलाएं

वैसे तो 365 दिन महिलाओं के लिए होते हैं। पर एक दिन ही क्यों मनाया जाता है ? ये बात आज तक समझ नहीं आई। कोई एक दिन घर महिला के बिना कल्पना कर के देखे। वह माँ, बहन, बेटी, बहु के रूप मैं हर दायित्व निभाती हैँ। भारत देश में महिलाओं के हित के कानून बनाएं गए है।इनका प्रयोग तब किया जाए, तब कोई रास्ता ना बचा हो। कानून का सहारा परिवार बचाने के लिए प्रयोग करें, पति को बर्बाद करने मैं नहीं। अपराधों के खिलाफ आवाज़ उठाएं। मातारानी के 9 रूपों को स्वयं में निहित रखें। जरुरत पड़ने पर प्रयोग करें, तभी नारी सशक्त हो सकती है।

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🔲 प्रीति सोलंकी, एडवोकेट, प्रदेश विधिक सलाहकार
श्री राष्ट्रीय राजपूत करनी सेना मध्यप्रदेश

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…और तब वह हो जाती हतोत्साहित

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।
ऐसे आयोजनों से महिलाओं को स्वयं, परिवार, समाज और राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान देने के लिए प्रेरणा मिलती है। हर मोर्चे पर महिलाओं ने अपनी योग्यता। साबित की है। मगर महिला तब हतोत्साहित हो जाती है, जब जागरूकता के साथ अधिकारों के प्रति सक्रियता रहकर लड़ने के बावजूद भी उन्हें सफलता नहीं मिलती। निर्भया कांड के दोषियों को अब तक सजा नहीं मिली है। मां की वेदना समझ सकते हैं लेकिन न्याय में इतना विलंब होगा तो आखिर क्या होगा इस देश का? देश की महिलाओं का उनके सम्मान का, उनके अभिमान का यह चिंतनीय विषय है। महिलाएं अपनी खुशी अपने सपने ही नहीं, अपितु महिला समाज के सपनों को पूरा करें। उन्हें न्याय दिलवाने में मदद करें। सफलता के शिखर पर ले जाएं। महिलाओं से महिलाएं याराना रखें न कि ईर्ष्या।

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🔲 ज्योति चौधरी, समाजसेवी, रतलाम

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महिला पुरुष समानता का सिद्धांत बहुत पहले से भारतीय चिंतन का रहा विषय

संसार में महिला सशक्तिकरण चिंतन का विषय बना हुआ है। भारत में महिला सशक्तिकरण पर शासन, समाज, बुद्धिजीवियों, मनीषियों द्वारा विचार किया जा रहा है। किसी भी देश की महिला समाज का अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस बात को भारत की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक परंपरा में महत्व प्रदान किया गया है। महिला पुरुष समानता का सिद्धांत बहुत पहले से भारतीय चिंतन का विषय रहा है। यही कारण है कि नारी को आदिशक्ति कहां गया है। धार्मिक परंपराओं में भी महिलाओं का सम्मानजनक स्थान है। समाज में एक तरफ महिला को देवी रूप में पूजा गया वहीं दूसरी ओर उसे मानवी तक ना बनने दिया। समाज में बहुत बदलावट है फिर भी और बदलने की जरूरत है। मनुष्य को नारी के प्रति अपनी मानसिकता बदलना चाहिए। नहीं तो स्त्री को बराबर समझने का सपना अधूरा रहेगा। मेरा विचार है छात्र-छात्राओं को अध्यापन के दौरान ही नैतिक शिक्षा पर ध्यान देना चाहिए। बच्चों में अच्छे संस्कारों को देकर नारी के प्रति आदर की भावना बाल्यावस्था से ही डालना चाहिए। नारी की सुरक्षा सर्वोपरि है। सच पूछिए तो नारी कहीं सुरक्षित नहीं है, मां की कोख में भी नहीं। नारी सशक्तिकरण का अर्थ पुरुषों की बराबरी करना कतई नहीं है। प्रकृति के निर्माण को हम चुनौती नहीं दे सकते। नारी सशक्तिकरण वह है जो नारी को सम्मान दे, उसके कार्यों को तवज्जो दें। सशक्तिकरण तभी संभव है, जब हम स्वयं अपने को सशक्त समझे। अपने आत्म सम्मान गौरव की रक्षा के लिए जागरूक रहें। ना गलत करें, ना करने दे।मेरी दृष्टि में नारी सशक्तिकरण वह है जो अपने कर्तव्यों का निष्ठा पूर्वक निर्वाह करें। महिला को यह पता हो कि घर के मेडिक्लेम कहां रखे हैं पति बीमार हो या कोई भी सदस्य उसे डॉक्टर के यहां ले जाएं। मै यही कहना चाहूंगी की नारी सशक्तिकरण शिक्षा से शिक्षा से संभाव्य नारी शिक्षित होती है, तब पूरा परिवार, समाज शिक्षित होता है।

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🔲 डॉ. चंचला दवे, लेखिका, सागर

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